रायपुर। आदिवासी संस्कृति-परंपराएं, जो प्राचीनतम मानी जाती है, अब आधुनिक समाज में नए ट्रेंड या फैशन के रूप में अपना स्थान बना चुकी है। हम पाते हैं कि आदिवासी लोक नृत्य-गीत को जब मंच में प्रस्तुत किया जाता हैं, तब सबसे अधिक पसंद किये जाते हैं। जिसे आज टैटु के रूप में युवक-युवती अपने शरीर के विभिन्न हिस्सों में टैटू बनवाते हैं. वास्तव में वह आदिवासी समाज का गोदना का ही रूप है। यह बात राज्यपाल अनुसुईया उइके ने आज छिंदवाड़ा में कीर्तिश केयर फाउंडेशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही। राज्यपाल ने इस अवसर पर के.के. फाउंडेशन के गोंडवाना आर्ट गैलरी एवं लोक बोली कार्यशाला का शुभारंभ किया।
राज्यपाल ने कहा कि गोंडी, मवासी और खड़ी बोली पर आधारित यह कार्यशाला हमारे बोली भाषााओं को संरक्षित करेगी। मैंने इस कार्यशाला में देखा कि विशेषज्ञों ने मवासी भाषा पर शोध कर शब्दकोष का निर्माण किया है, वह सराहनीय है। यदि हम प्राथमिक शिक्षा स्थानीय भाषा देंगे तो तभी वह अधिक ग्राह्य होगी। यदि शिक्षक जनजातीय क्षेत्रों में बच्चों से उन्हीं की बोली-भाषा में बात करेगा और शिक्षा देगा तो बच्चे उस विषय को अधिक अच्छे ढंग से समझ पाएंगे। राज्यपाल ने जनजातीय क्षेत्रों में स्थानीय भाषाओं के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति तथा बैगलाग के पदों में स्थानीय बोली-भाषाओं के जानकार शिक्षकों का कोटा निर्धारित करने का सुझाव दिया।
उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज के हाथों में जन्मजात हूनर होता है। वे किसी भी वस्तु को जब कलाकृति का रूप देते हैं तो जैसे उसमें जान आ जाती है। परन्तु उन कलाकारों को उनके कलाकृतियों का वास्तविक मूल्य नहीं मिल पाता है जबकि अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में उसकी कीमत हजारों -लाखों में होती है। ट्राईफेड द्वारा ऐसे कलाकारों के उत्पादों को बेचे जाने के लिए विभिन्न प्रयास किये जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी आत्मनिर्भर भारत का नारा दिया है, जिसके तहत उन्होंने स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने का आह्वान किया है। प्रधानमंत्री का यह सपना हम सबके प्रयासों से ही साकार होगा। राज्यपाल ने इस अवसर पर आदिवासी लोक कला पर आधारित प्रदर्शनी का अवलोकन किया। उन्होंने इस कार्यक्रम में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों और कलाकारों का भी सम्मान किया गया।