हकिमुददीन नासिर, महासमुंद। जंगल में पेड़ काटकर झोपड़ी बनाकर रह रहे आदिवासी किसान सैनिकों को वन अमले ने पकड़ने के बाद समझाइश देने के बाद छोड़ दिया. वहीं जिन लोगों ने पेड़ों की कटाई की है, उन पर विभाग नियमानुसार कार्रवाई की बात कह रहा है. इसे भी पढ़ें : दिनदहाड़े 15 लाख के जेवर की उठाईगिरी करने वाले 4 आरोपियों को पुलिस ने 10 घंटे के भीतर धर-दबोचा…
महासमुंद वनपरिक्षेत्र के बेलर-मोहंदी के कक्ष क्रमांक 61 के नेचुरल जंगल में जिले के मांझी आदिवासी किसान सैनिकों ने करीबन 200 पेड़ों को काटकर झोपड़ी बनाकर रह रहे थे. इसकी सूचना मिलने पर वन विभाग के अधिकारी व कर्मचारी 17 आदिवासी किसान सैनिकों को उठाकर वन प्रशिक्षण शाला महासमुंद लाए. वनमण्डलाधिकारी ने नियमों का हवाला देते हुए उन्हें समझाइश दी, जिसके बाद उन्हें छोड़ दिया गया.
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मांझी आदिवासी किसान सैनिक परसराम ध्रुव ने बताया कि हम लोग बेहद गरीब व भूमिहीन आदिवासी हैं. हम लोग मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. हम लोगों के पास कोई काम नहीं है. हम लोगों ने वर्ष 2023 में प्रशासन व वन विभाग को आवेदन देकर पट्टा देने की मांग की थी, जिससे हम लोग खेती कर अपना जीविकोपार्जन कर सके. प्रशासन के मांगों पर ध्यान नहीं देने पर 35 गांव ( मोगरा , मुस्की , जोबा , झलप , घोघी बहरा , सोरिद , मोहकम , साल्हेभाठा आदि ) के करीबन 200 आदिवासी परिवार कक्ष क्रमांक 61 में बल्ली को काटकर झोपड़ी बना रहे हैं.
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वहीं इस पूरे मामले में वनमण्डलाधिकारी पंकज राजपूत ने बताया कि आदिवासी किसान सैनिक नियम विरुद्ध कक्ष क्रमांक 61 मे कुछ पेड़ों को काटकर झोपड़ी बनाने का प्रयास कर रहे थे. इसकी सूचना मिलने पर 17 आदिवासियों को उठाकर लाया गया था, जिसमें तीन महिलाएं थीं. समझाने पर ये लोग मान गए, जिसके बाद उन्हें वापस छोड़ा जा रहा है. लेकिन कुछ पेड़ कटे हैं, जिस पर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी. इसके साथ कलेक्टर से बातचीत कर इन आदिवासियों को पात्रता अनुसार, शासकीय योजनाओं का लाभ दिलाया जाएगा.
आखिर कौन है आदिवासी किसान सैनिक
जंगल में पेड़ों की कटाई कर झोपड़ी बनाने वाले आदिवासी किसान सैनिकों को लेकर सहसा ही आपके मन में कौतुहल पैदा हो सकता है. आदिवासी भी है, किसान भी हैं, और सैनिक भी!, लल्लूराम डॉट कॉम से चर्चा में इन आदिवासियों ने बताया कि उनके संगठन का मुख्यालय दिल्ली है, जहां से मिले निर्देश पर ये काम करते हैं. इन आदिवासी महिला-पुरुषों का बाकायदा एक ड्रेस कोड है. अकेले छत्तीसगढ़ में संगठन से करीबन एक लाख आदिवासियों के जुड़े होने का दावा करते हैं.