
रायपुर. लंबे समय से प्रदेश में उठी आदिवासी आरक्षण की मांग आखिर आज पूरी हो ही गई. छत्तीसगढ़ विधानसभा में आरक्षण विधेयक सर्व सम्मति से पारित हो गया है. जिसके तहत अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए 32 फीसदी, अनुसूचित जाति वर्ग के लिए 13 फीसदी, ओबीसी वर्ग के लिए 27 फीसदी और EWS के लिए 4 फीसदी आरक्षण का प्रावधान रखा गया है. हालांकि प्रदेश में इसकी राह आसान नहीं रही. आरक्षण का कोटा बढ़ाने के लिए सरकार और लाभार्थियों, दोनों को भी संघर्ष करना पड़ा है. कानूनी रूप से हो या राजनीतिक रूप से इस मुद्दे को कई दौर से गुजरना पड़ा है.
पहले बात करते हैं कानूनी लड़ाई की. 19 सितंबर 2022 को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने राज्य में 50% से अधिक आरक्षण असंवैधानिक बताया था. 2012 तक छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति वर्ग को 16% आरक्षण मिलता था. 2012 में बदलाव होने के बाद इसे 12 प्रतिशत कर दिया गया. हाईकोर्ट ने आदेश जारी करके अनुसूचित जनजाति के लिए 32%, अनुसूचित जाति को 12% और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए 14% आरक्षण के प्रावधान की नवम्बर 2012 में जारी अधिसूचना को असंवैधानिक बता दिया था. जिसके बाद वर्तमान सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की.
अब आरक्षण खत्म होने से आदिवासी समाज समेत कई अन्य वर्ग के लोगों में जबरदस्त आक्रोश था. जिसे खत्म करने के लिए सरकार ने विधानसभा के विशेष सत्र का सहारा लिया. सरकार ने इसके लिए कई बैठकें भी की. फिर अंत में आरक्षण के मसले को ध्यान में रखते हुए विशेष सत्र बुलाया गया.
आदिवासी समाज और विपक्षी दलों का प्रदर्शन
अब राजनीतिक लड़ाई की बात करें तो, आरक्षण को लेकर आदिवासी समाज लगातार सरकार से इस विषय पर मांग कर रहे थे. आदिवासी समाज ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. धरना, प्रदर्शन से लेकर चक्काजाम तक किया गया. वहीं मुख्य विपक्षी दल भाजपा भी लगातार सरकार को घेर रही थी. बीजेपी के एक बड़े नेता तो 32 प्रतिशत आरक्षण की मांग को लेकर धरने पर ही बैठ गए थे.
हालांकि अब छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण के लिए सर्वसम्मति से पारित विधेयक को केंद्र सरकार के पास भेजने का संकल्प भी विधानसभा में पारित हो गया है. इस संकल्प में केंद्र सरकार से अनुरोध किया गया है कि वह इस आरक्षण प्रावधान को नौंवी अनुसूची में शामिल करे. साथ ही इसे प्रस्ताव को राज्यपाल को भी भेजा जाएगा. उनके हस्ताक्षर करने के बाद विधेयक अधिनियम बन जाएंगे. इसके बाद असाधारण राजपत्र में प्रकाशित होते ही यह प्रदेश में आरक्षण की नई व्यवस्था लागू हो जाएगी.

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