भारत में एक समय ऐसा भी था जब दिनचर्या की सबसे बड़ी जरूरत यानि शौच या पेशाब जाने को आपदा समझा जाता था. खासतौर पर महिलाओं के लिए और कई बार पुरुषों के लिए भी यह किसी मुसीबत से कम नहीं होती थी. इसकी सबसे बड़ी वजह थी भारत के शहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक स्‍थानों और ग्रामीण क्षेत्रों में घरों के अंदर शौचालय न होना लेकिन तभी एक व्‍यक्ति सामने आया जिसने न केवल देशभर में सार्वजनिक शौचालय बनाने की ठानी बल्कि इसे मिशन बना लिया और उन्‍हें टॉयलेट मैन ऑफ इंडिया के नाम से जाना गया. वहीं इन्‍होंने टॉयलेट्स को सुलभ शौचालय नाम दिया.

उसके साथ है विश्व की सबसे विचित्र संग्रहालय का रिकॉर्ड बिहार के बिंदेश्वर पाठक के नाम है. जिनका मंगलवार को दुखद निधन होगा. वैशाली जिले के रामपुर बाघेल गांव में उनका जन्म हुआ था. सुलभ इंटरनेशनल के फाउंडर बिंदेश्वर पाठक का 80 साल की उम्र में निधन हो गया.

एक स्लोगन भी फेमस है ‘जहां सोच वहां शौचालय’ नई दिल्ली के महावीर एंक्लेव में अंतरराष्ट्रीय सुलभ शौचालय संग्रहालय है. यहां लगभग 50 देशों के एक से बढ़कर एक शौचालय प्रदर्शनी में लगाए गए हैं. इसमें कुछ 3000 ईसा पूर्व से लेकर बीसवीं शताब्दी तक के हैं. कुछ सोने के बने हैं तो कुछ में कमाल की नक्काशी की गई है. साल 1992 में इस अंतर्राष्ट्रीय सुलभ शौचालय संग्रहालय की स्थापना हुई थी.

पद्म भूषण से सम्मानित

पाठक ने सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की थी. यह एक समाजिक सेवा संगठन है. यह संस्था शिक्षा के माध्यम से मानव अधिकारों, पर्यावरण स्वच्छता और अपशिष्ट का मैंनेज करता है. इसकी भूमिका देशभर में सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण में मुख्य रही है. संगठन के फाउंडर बिंदेश्वर पाठक को 1991 में उनके काम और पोर फ्लश टॉयलेट टेक्नोलॉजी पेश करके पर्यावरण को रोकने के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. इसके अलावा डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें गुड कार्पोरेट सिटिजन अवार्ड, एनर्जी ग्लोब अवार्ड, डब्ल्यूएचओ पब्लिक हेल्थ कैपेन अवार्ड दिया गया है. साथ ही उन्हें गांधी शांति पुरस्कार भी मिल चुका है.

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