टेलिविज़न की दुनिया में TRP को इतना ज़्यादा महत्व इसलिए दिया जाता है क्योंकि इसका सम्बन्ध किसी चैनल की कमाई से होता है। जिस चैनल को दर्शक कम देखा करते हैं उसकी टीआरपी गिर जाती है जिसके कारण उसे विज्ञापन कम मिलने लगते हैं और उसकी कमाई पर बुरा असर पड़ता है और जिस चैनल के शो बहुत ज़्यादा बार देखे जाते हैं, उसकी टीआरपी बहुत बढ़ जाती है जिसकी वजह से विज्ञापन से चैनल को कमाई भी बहुत अच्छी होती है। TRP की वरीयता मीडिया हाउस के लिए क़ायम रहने के लिए बड़ी जद्दोजहद वाला मसला होता है, TRP से छेड़छाड़ कोई नया विषय नहीं है, पैसे देकर मीटर से छेड़छाड़ कोई नई बात नहीं बस पकड़ा गया वो चोर बाकि सब सयाने वाली बात है।
चैनल और शो की टेलीविजन रेटिंग पॉइंट (TRP) सबसे ज़्यादा है। टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट्स – टीआरपी एक कसौटी है जो एक चैनल या कार्यक्रम की लोकप्रियता इंगित करती है और यह डाटा विज्ञापनदाताओं के लिए बहुत उपयोगी है। आजकल, BARC ( ब्रॉड्कास्ट ऑडीयन्स रिसर्च काउन्सिल) रेटिंग एजेन्सी भारत में काम करती है। BARC टीआरपी की गणना के लिए दो तरीकों का इस्तेमाल करती है। पहली आवृत्ति की निगरानी है, जहाँ ‘पीपल मीटर्स’ को नमूने घरों में स्थापित किये जाते हैं और ये इलेक्ट्रॉनिक उपकरण परिवार के सदस्यों द्वारा देखा जाने वाला चैनल के बारे में डाटा लगातार रिकॉर्ड करते हैं। ‘पीपल मीटर’ एक कीमती उपकरण है, जो विदेशों से आयात किया जाता है। यह चैनल की आवृत्तियों को पढ़ता है, जो बाद में, चैनल के नामों में डीकोड किया जाता है और यह एजेंसी राष्ट्रीय डाटा तैयार करता है जो इन नमूने घरों के रीडिंग पर आधारित है।
लेकिन इस तकनीक में एक दोष है, क्योंकि केबल आपरेटरों अक्सर घरों में संकेत भेजने से पहले विभिन्न चैनलों की आवृत्तियों को बदलते रहते हैं। एक चैनल को अगर एक निश्चित आवृति के अनुसार पढ़ा गया तो यह गुमराह कर सकती है यदि पूरी भारत में एक ही डाउन लिंकिंग आवृति क्यों न हो.दूसरी तकनीक अधिक विश्वसनीय है और भारत में अपेक्षाकृत नई है। तस्वीर मिलान तकनीक में पीपल मीटर लगातार उस तस्वीर के छोटे हिस्सों को रिकार्ड करता जाता है जिसे एक निश्चित टेलीविज़न में देखा जा रहा है। इसके साथ-साथ यह एजेन्सी सभी चैनलों के डाटा को भी छोटे तस्वीर के अंश के आकार में रिकार्ड करती है। नमूने घरों से जो डाटा एकत्र किया गया है उसे बाद में मुख्य डाटा बैंक से मिलान करते हैं ताकि चैनल के नाम की व्याख्या कर सकें.
समझा जा सकता है कि जो न्यूज़ चैनल समाचार, सरोकार के ज़्यादा क़रीब होते हुए भी TRP की वरीयता सूची में नहीं आ पाते वे शायद इसके मैनज्मेंट के खेल की बाज़ीगरी नहीं जानते और इन सब में ठगा दर्शक उसे ही बढ़िया समझ लेता है जिसे प्रोजेक्ट कर दिया जाता है।
लेखक- (मनोज त्रिवेदी नवभारत के CEO, दैनिक भास्कर और नईदुनिया छतीसगढ़ के GM रह चुके है)