भारतीय आईटी सेक्टर को उस वक्त जोरदार धक्का लगा जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीज़ा पर 100,000 डॉलर की वार्षिक फीस लगाने संबंधी आदेश पर दस्तखत कर दिए. यह फैसला सिर्फ एक इमीग्रेशन बदलाव नहीं, बल्कि भारतीय आईटी कंपनियों के लिए भारी लागत का बोझ साबित होने वाला है.

शेयर बाजार में भूचाल

ट्रंप प्रशासन के इस कदम का असर तुरंत ही शेयर बाज़ार में देखने को मिला.

इन्फोसिस के शेयर शुक्रवार को 4.5% तक टूट गए.

कॉग्निजेंट टेक्नोलॉजी में 4.3% की गिरावट दर्ज हुई.

विप्रो ने 3.4% तक नुकसान झेला.

यहां तक कि बहुराष्ट्रीय कंपनी एक्सेंचर भी इससे बच न सकी और इसके शेयर 1.3% गिर गए.

भारतीय आईटी कंपनियां लंबे समय से एच-1बी वीज़ा पर निर्भर रही हैं, ताकि अमेरिकी क्लाइंट्स की परियोजनाओं में भारत के कुशल पेशेवरों को नियुक्त किया जा सके. लेकिन नई फीस से उनका कॉस्ट-इफिशिएंसी मॉडल डगमगा सकता है.

ट्रंप का तर्क और व्हाइट हाउस का इरादा

ओवल ऑफिस से इस घोषणा को करते हुए राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि यह कदम सुनिश्चित करेगा कि अमेरिका में केवल “सर्वश्रेष्ठ और अत्यंत कुशल” लोग ही आ सकें. ट्रंप ने आरोप लगाया कि कंपनियां अब तक अमेरिकी कर्मचारियों की जगह विदेशी कर्मचारियों को कम लागत पर भर्ती कर रही थीं.

अमेरिका के कॉमर्स सेक्रेटरी हॉवर्ड ल्यूटनिक ने भी इस कदम का समर्थन किया. उनका दावा है कि इस शुल्क से अमेरिकी खजाने में सालाना 100 अरब डॉलर से अधिक की रकम आएगी, जिसे टैक्स कटौती और कर्ज़ घटाने में इस्तेमाल किया जाएगा.

ल्यूटनिक ने साफ कहा – “या तो विदेशी कर्मचारी कंपनी के लिए बेहद मूल्यवान होगा, या फिर कंपनी उसकी जगह किसी अमेरिकी को नियुक्त करेगी. यही सही मायने में इमीग्रेशन का उद्देश्य है.”

भारतीय आईटी सेक्टर के लिए चुनौती

भारतीय आईटी कंपनियां एच-1बी वीज़ा की सबसे बड़ी यूज़र हैं. यह वीज़ा तीन साल के लिए वैध होता है और तीन साल तक और बढ़ाया जा सकता है. दशकों से यह भारतीय तकनीकी कर्मचारियों के लिए अमेरिका में नौकरी का सबसे प्रमुख माध्यम रहा है.

लेकिन अब प्रत्येक आवेदन के साथ 100,000 डॉलर का वार्षिक शुल्क कंपनियों पर सीधा बोझ बनेगा. इसका असर न केवल लागत पर पड़ेगा, बल्कि अमेरिका में भारतीय कर्मचारियों की नियुक्ति पर भी रोक लग सकती है.

निवेशकों की चिंता और आगे का रास्ता

विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला भारतीय आईटी सेक्टर की ग्रोथ स्टोरी को धीमा कर सकता है. कंपनियों को अब अपनी हायरिंग स्ट्रैटेजी, क्लाइंट कॉन्ट्रैक्ट्स और मार्जिन की फिर से गणना करनी होगी.

हालांकि, उद्योग जगत में यह भी चर्चा है कि कंपनियां अब अमेरिका में लोकल टैलेंट पर अधिक ध्यान देंगी और भारतीय कर्मचारियों को भेजने की प्रक्रिया में भारी कटौती करनी होगी.