कैलाश रविदास, रायपुर। किसी ने अपने अल्फाजों से कहा था कि नदियों के जल जब निर्मल होंगे, गंगा जल अमृत बन जाएगा. मुर्दाघाट जब अलग बनेगा, कोई लाश नहीं दफनाएगा, लेकिन सिस्टम ने इन अल्फाजों को लापरवाही तले रौंद दिया. गंगा को अपवित्र कर दिया. सिस्टम की नाकामी से गंगा नदी में लाशों का सैलाब आ गया. चारों ओर इंसानी शरीर तैरने लगे. एक अंग इधर बिखरा पड़ा था, तो एक अंग उधर टुकड़ों में बंटे मिले. उस वक्त मां गंगा भी कराह पड़ी होगी और बोली होंगी, हे शिव जी मुझे फिर से अपनी जटाओं में समा लीजिए. इन लाशों की तरह ही इंसानियत भी आज दफन हो चुकी है. गंगा के बाद अब धरती भी लाशें उगलने लगी है.
350 से ज्यादा शव दफन मिले- मीडिया रिपोर्ट
दरअसल, ये तस्वीरें यूपी और बिहार की हैं, जो सिस्टम को आइना दिखा रही हैं. सिस्टम को तमाचा जड़ रही हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कानपुर, कन्नौज, उन्नाव, गाजीपुर और बलिया में हालात बेहद खराब पाए गए हैं. कन्नौज में गंगा किनारे 350 से ज्यादा शव दफन मिले. वहीं कानपुर में गंगा किनारे और पानी में लाशें ही लाशें नजर आईं. कुछ जगहों पर लाशों को कुत्ते और चील-कौए नोचते नजर आए. मीडिया रिपोर्ट्स में पाया गया कि प्रशासन उन लाशों पर मिट्टी डालने का काम कर रहा है.
धरम्मरपुर गंगा घाट में 123 शव
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गाजीपुर के धरम्मरपुर गंगा घाट के किनारे 123 शव मिले थे. इलाके में दहशत का माहौल था, लेकिन प्रशासन ने सभी शवों को दफन कर दिया. 10 मई को गहमर थाना क्षेत्रों के प्रमुख गंगा घाटों पर भी कई शव मिले थे, जिन पर प्रशासन ने पर्दा डालने की कोशिश की थी.
900 से ज्यादा लाशें दफन
कोरोना काल में देश का सबसे बड़ा श्मशान उन्नाव में बनाया गया है. यहां के शुक्लागंज घाट और बक्सर घाट के पास तकरीबन 900 से ज्यादा लाशें दफन करने की रिपोर्ट्स है. मिली जानकारी के मुताबिक श्मशान घाट में कदम-कदम पर इंसानी अंग बिखरे थे. लाशों को कुत्ते और चील कौवे नोच रहे थे, लेकिन प्रशासन आंख मेंद कर सोता रहा.
जानें कहां मिली कितनी लाशें ?
फतेहपुर, 20 शव दफन, संगमनगरी प्रयागराज में 13 शव, चंदौली के बड़ौरा गांव में 12 से ज्यादा लाशें, भदोही के रामपुर गंगा घाट पर 8 शव, वाराणसी के सूजाबाद इलाके में 7 शव मिले. गाजीपुर में 280 लाशें मिलीं, बिहार के बक्सर में 100 से ज्यादा लाशें, गाजीपुर से सटे बलिया में 15 लाशें, इसी तरह बिजनौर, मेरठ, मुज्जफरनगर, बुलंदशहर, हापुड़, अलीगढ़ और कासगंज समेत कई इलाकों से 2000 से ज्यादा लाशें बरामद हुई है.
आखिर क्या है वजह ?
बिहार और यूपी में कोरोना से बहुत लोगों की मौतें हुई है, लेकिन सच्चाई सामने नहीं आ सकी. सरकार संख्या को छिपाने की नाकाम कोशिश की, लेकिन बारिश ने बिहार और यूपी सरकार की पोल खोल कर रख दी है. असल में दिन-ब-दिन हो रहे मौतों की वजह से श्मशान घाटों पर लकड़ी के दामों में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. जो लकड़ी 800 से 900 रुपए क्विंटल बिकती थी, वो लकड़ियां आज आपदा में अवसर का रूप ले चुकी है. हजारों रुपये वसूला जा रहा है. ऐसे में हर कोई पैसे वाला नहीं होता. एक लाश को जलाने के लिए करीब 4-5 क्विंटल लकड़ी लग रही है, जिसमें तकरीबन 7 से 8 हजार रुपये का खर्च आ रहे है. ऐसे में ज्यादातर लाशों को गंगा में बहाने की फैसला लिया गया होगा.
विपक्ष भी हमलावर
अब इन सब मामलों को लेकर विपक्ष भी हमलावर है. विपक्ष का कहना है कि जीते जी दवा, ऑक्सीजन, बेड और इलाज नहीं दिया. मरने के बाद लकड़ी, दो गज कफन और जमीन भी नसीब नहीं हुआ. दुर्गति के लिए शवों को गंगा में फेंक दिया. कुत्ते लाशों को नोच रहे हैं. हिंदुओं को दफनाया जा रहा है. कहां ले जा रहे हैं देश और इंसानियत को?’ इससे पहले राजद नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी हमला किया था.
कैसे खुला राज ?
अचानक से बदले मौसम की वजह से जब बारिश हुई, तो रेत में दबे शव बाहर निकल आए. धरती अचानक से शव उगलने लगी. इलाके में दहशत का माहौल. लोग खौफजदा नजर आए. हर इलाके से रेत में दबे शव प्रशासन की सारी व्यवस्थाओं की पोल खोल कर रख दी. गंगा के बाद रेत से निकलती लाशें प्रशासन के मुंह पर करारा तमाचा जड़ा. एक के बाद एक राज खुलते गए और सरकार समेत प्रशासन बेनकाब होता गया.
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