Tula daan: सनातन परंपरा में पुण्य फलों को दिलाने वाले तुलादान का बहुत ज्यादा महत्व है. इसमें किसी भी मनुष्य के भार के बराबर अनाज दान करने का महत्व है. इस दान का महत्व तब और बढ़ जाता है जब इसे किसी पर्व विशेष पर किसी पवित्र नदी में स्नान करने के बाद किसी तीर्थ पर किसी योग्य व्यक्ति को दान किया जाता है.
Tula daan: सनातन परंपरा में पुण्य फलों को दिलाने वाले तुलादान का बहुत ज्यादा महत्व है. इसमें किसी भी मनुष्य के भार के बराबर अनाज दान करने का महत्व है. इस दान का महत्व तब और बढ़ जाता है जब इसे किसी पर्व विशेष पर किसी पवित्र नदी में स्नान करने के बाद किसी तीर्थ पर किसी योग्य व्यक्ति को दान किया जाता है.
तुलादान को हमेशा शुक्ल पक्ष में रविवार के दिन करना चाहिए. तुलादान में नवग्रह से जुड़ी सामग्री दान करने पर नवग्रहों से जुड़े दोष भी दूर हो जाते हैं. मान्यता है कि तुलादान को करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और वह सभी सुखों को भोगता हुआ अंत समय में मोक्ष को प्राप्त होता है.
कैसे करें तुलादान (Tula daan)
तुलादान करने के लिए आप चाहें तो नवग्रह से जुड़े अनाज को या फिर सतनजा (गेहूं, चावल, दाल, मक्का, ज्वार, बाजरा, सावुत चना) दान कर सकते हैं. इसके अलावा आप चाहें तो आप अपने भार के बराबर हरा चारा तोलकर, रविवार के दिन किसी गोशाला में दान कर सकते हैं. इसकी जगह आप चाहें तो आप पक्षियों को डाले जाने वाले अनाज का तुलादान कर सकते हैं और उसे प्रतिदिन पक्षियों को खाने के लिए डाल सकते हैं.
भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं में भी है तुलादान
तकककभगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं में एक लीला है तुलादान लीला, जिसमें भगवान श्री कृष्ण ने तुलसी के महत्व को बताया है. भगवान सत्यभामा ने भगवान श्री कृष्ण पर अपना एकाधिकार जमाने के लिए महर्षि नारद को दान में दे दिया. जब नारद मुनि भगवान कृष्ण को ले जाने लगे तो सत्यभामा को अपनी इस भूल का अहसास हुआ. तब उन्होंने दोबार से भगवान कृष्ण को पाने का उपाय पूछा तो नारद मुनि ने उन्हें भगवान कृष्ण का तुलादान करने को कहा. इसके बाद तराजू में एक तरफ भगवान श्रीकृष्ण और दूसरी तरफ स्वर्णमुद्राएं, गहने, अन्न आदि रखा गया लेकिन भगवान कृष्ण का पलड़ा नहीं उठा.
इसके बाद रुक्मणी ने सत्यभामा को दान वाले पलड़े में एक तुलसी पत्र रखने को कहा. सत्यभामा ने जैसा तुलसी का पत्ता रखा, दान वाला पलड़ा भगवान श्री कृष्ण के पलड़े के बराबर हो गया. तब भगवान श्रीकृष्ण ने तुलादान को महादान बताया. जिसके करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति और पुण्य फल की प्राप्ति होती है. इस लीला से प्रेरित होकर भगवान द्वारकाधीश मंदिर के साथ ही एक अन्य मंदिर का निर्माण किया गया है. जिसे तुलादान मंदिर के नाम से जाना जाता है.
इस मंदिर का नाम तुलादान मंदिर इसलिए है क्योंकि मान्यताओं के अनुसार यही वह स्थान है जहां पर स्त्यभामाजी ने श्री कृष्ण का तुलादान किया था. यहां मंदिर में भगवान श्री कृष्ण के ठीक सामने एक बड़ा सा तुला यानी तराजू रखा हुआ है जिस पर तुलादान किया जाता है.
- छतीसगढ़ की खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक
- मध्यप्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- उत्तर प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- दिल्ली की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- पंजाब की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- English में खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- मनोरंजन की खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक