तुला संक्रांति का पर्व 17 अक्टूबर को मनाया जाएगा. यह वह विशेष दिन है जब सूर्य देव कन्या राशि से निकलकर तुला राशि में प्रवेश करते हैं. ज्योतिषीय और धार्मिक रूप से इस गोचर को ‘पुण्यकाल’ माना जाता है, जो दान, स्नान और पुण्य कर्मों के लिए अत्यंत शुभफलदायी होता है.

धार्मिक महत्व और संतुलन का प्रतीक ‘तुला’
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, तुला संक्रांति पर विशेष रूप से तिल और गुड़ का सेवन और दान अत्यंत शुभ माना जाता है. इस दिन इन वस्तुओं का दान करने से सूर्य भगवान की कृपा प्राप्त होती है और पापों का क्षय होता है. ‘तुला’ का अर्थ है ‘तराजू’ या संतुलन, इसलिए इस संक्रांति पर किया गया दान और पूजा-पाठ जीवन में संतुलन, सकारात्मकता और सामाजिक सद्भाव को बढ़ाता है. यह दान आंतरिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति में भी सहायक होता है.
मौसम में घूमने लगती है ठंडा
धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ, विज्ञान और आयुर्वेद भी इस पर्व के दौरान तिल-गुड़ के सेवन को महत्वपूर्ण मानते हैं. तुला संक्रांति के साथ ही मौसम में बदलाव शुरू होता है और हल्की सर्दी दस्तक देने लगती है. तिल और गुड़ ऐसे समय में शरीर को आंतरिक ऊर्जा और गर्माहट प्रदान करते हैं. तिल में पॉलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड्स, कैल्शियम और प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होते हैं, जो शरीर को ताकत देते हैं, जबकि गुड़ आयरन का मुख्य स्रोत है और रक्त शुद्धिकरण में सहायक माना जाता है. आयुर्वेद मौसम परिवर्तन से होने वाले संक्रमणों और मौसमी बीमारियों से बचाव के लिए भी सर्दी के आगमन पर इनके सेवन की अनुशंसा करता है.
सूर्य की शक्ति का दान से संबंध
तुला राशि में सूर्य का प्रवेश ‘तुला रश्मि’ के रूप में जीवन में आत्मबल और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है. धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि तिल और गुड़ का दान सूर्य की शक्ति को बढ़ाता है, जिससे शारीरिक और मानसिक संतुलन मजबूत होता है.
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