रायपुर। ‘एक वृद्ध की मृत्यु के साथ एक पुस्तकालय मर जाता है।’ यह बातें बतौर मुख्य अतिथि डॉ. सुशील त्रिवेदी ने रविवार को पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के साहित्य एवं भाषा अध्ययन शाला में आयोजित डॉ रमेश चंद्र मेहरोत्रा व्याख्यानमाला में कही. उन्होंने कहा कि अपनी सभ्यता और संस्कृति को जानने के लिए भाषा, साहित्य को जानना आवश्यक है और यह भाषाविज्ञान के बिना संभव नहीं है. बोलियों के साहित्य को नकार कर हिंदी साहित्य का अध्ययन नहीं किया जा सकता. महत्वपूर्ण ये है कि भाषा भारत कैसे आई और नीचे की ओर दक्षिण में कैसे गई ? इसे भाषाविज्ञान के माध्यम से समझा जा सकता है। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि विश्वविद्यिालय की स्थापना के बाद प्रथम कुलपति डाॅ. बाबूराम सक्सेना ने छत्तीसगढ़ी में पी-एच. डी. के लिए पहला पंजीयन प्रो. महरोत्रा के निर्देशन में कराया गया, जो छत्तीसगढ़ी पर केंद्रित था. यह छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी की प्रतिष्ठा की दृष्टि से यह महत्वपूर्ण पड़ाव था।


वहीं विशेष अतिथि प्रो. चितरंजन कर ने प्रो. रमेशचंद्र महरोत्रा के जीवन परिचय दिया और प्रो. महरोत्रा के शब्दों को याद करते हुए कहा कि सही पाठालोचन साहित्यकार के काल निर्धारण का सर्वोत्तम माध्यम है। भाषाविज्ञान के माध्यम से भाषा और साहित्य की धारा का सही ज्ञान संभव होता है। अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति के.एल. वर्मा ने कहा कि राष्ट्र संघ ने इस वर्ष को ‘लुप्तप्राय भाषाओं’ का वर्ष घोषित किया है और इस दौरान भाषा, साहित्य और भाषाविज्ञान पर केंद्रित इस संगोष्ठी का आयोजन महत्वपूर्ण है। भाषा-साहित्य विभाग को जिन ऊँचाइयों पर डॉ मेहरोत्रा ने बढ़ाया, उस परंपरा को आगे बढ़ाए ऐसा विश्वास व्यक्त किया। भाषा पर और अधिक कार्य हो तभी भाषाओं का संरक्षण, संवर्धन और अभिलेखीकरण आवश्यक है। विश्वविद्यालय के भाषा-साहित्य विभाग की परंपरा के ध्वजवाहक प्रो. महरोत्रा थे। और इस परंपरा को आगे बढ़ाने का कार्य उनकी शिष्य परंपरा के विद्वान निरंतर कर रहे हैं। एक भाषा का मरना, एक पूरी संस्कृति का मरना है और इसे रोकना बहुत जरूरी है। भाषा और साहित्य का विकल्प अध्ययन के लिए चुनना केवल टीचर बनने से संबंधित न हो ,क्योंकि भाषा-साहित्य का संबंध व्यक्तित्व निर्माण से भी है।

दरअसल रविवार को दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी और पूर्व छात्र मिलन समारोह का समापन था. इस समापन समारोह में डॉ. रमेशचंद्र महरोत्रा की याद में एक व्याख्यानमाला का भी आयोजन किया गया था.  डाॅ. विनय पाठक ने कहा कि भाषा और साहित्य के अंतर्सबंधों को समझने का अवसर प्रो. महरोत्रा एवं विभाग के माध्यम से मिला. वहीं  प्रो. प्रेम दुबे ने कहा कि डाॅ. रमेशचंद्र महरोत्रा भाषाविज्ञान की नींव तैयार करने के साथ उस नींव के ऊपर भाषाविज्ञान की विशाल अट्टालिका-निर्माण किया. ज्ञान-विज्ञान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाने का काम विद्यार्थी करें.  भाषाओं के सामने अपने-आप को बचाए रखने का संकट है, इस चुनौती से निपटने का प्रयास करें. डाॅ. रमेंद्रनाथ मिश्र ने विश्वविद्यालय परिसर की हरियाली का श्रेय डाॅ. महरोत्रा एवं भाषाविज्ञान विभाग के विद्यार्थियों को दिया. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के नींव के सबसे मजबूत पत्थरों में एक डाॅ. महरोत्रा हैं.

डाॅ. ए. के. वर्मा ने कहा कि स्नातकोत्तर अर्थशास्त्र की पढ़ाई अधूरा छोड़ते हुए डाॅ. हीरालाल शुक्ल की प्रेरणा से भाषाविज्ञान में प्रवेश लिया और प्रो. महरोत्रा के संपर्क में आया और उनकी विद्वता का ज्ञान हुआ. उनकी प्रेरणा और मार्गदर्शन का परिणाम है भाषाविज्ञान और पुस्तकालय विज्ञान के अंतरावलंब आधारित मेरी पी-एच. डी. पूरी हो पाई.  डाॅ. नरसिंह यादव ने कहा कि भाषाविज्ञान को इस बात का श्रेय है कि भारत की समस्त भाषाओं को हिंदी के साथ जोड़कर समझने का मौका मिला. हिंदी सेवा का प्रतिफल एक बार राष्ट्रपति एवं सात बार राज्यपाल के हाथों सम्मानित होने का अवसर मिला. भाषा, साहित्य और भाषाविज्ञान का कोई सानी नहीं है. बशर्ते हमारा जज्बा कमजोर न हो. अपनी भाषा की क्षमता के प्रति विश्वास हो. मधुसूदन उष्य ने कहा कि डाॅ. महरोत्रा ने भाषा और भाषाविज्ञान से परिचय कराया और नौकरी करते हुए भाषाविज्ञान में एम. ए. किया. वहीं प्रो. रमेशचंद्र महरोत्रा की पुत्री  संज्ञा टंडन ने अपने पिता का संस्मरण सुनाया. साथ ही विचार-विमर्श नाम से दो सी डी विभाग को भेंट की. सीडी में रमेशचंद्र महरोत्रा के आवाज में रिकार्ड है, जो भाषा और साहित्य का प्रभाव पर आधारित है, इसे संगोष्ठी में सुनाया भी गया.


सत्र के अंत में कुलपति ने गुरू सम्मान अतिथियों को सम्मानित किया. इसमें क्रमशः  स्व. मन्नूलाल यदु जी की सहधर्मिणी, संज्ञा टंडन, डाॅ. रमेंद्रनाथ मिश्र, डाॅ. विनय कुमार पाठक, डाॅ. प्रेम दुबे,  डाॅ. मधुसूदन,  डाॅ. नरसिंह यादव का सम्मान किया गया. संचालन डाॅ. सुभद्रा राठौर ने और आभार प्रदर्शन किया भूतपूर्व छात्र समिति के अध्यक्ष डाॅ. प्रवीण शर्मा किया.  वहीं इसके बाद भूतपूर्व छात्र-छात्राओं आरती, शुभ्रा आदि ने अपने संस्मरण सुनाए , जबकि शशि खुटिया, शुभ्रा और पायल ने नृत्य प्रस्तुत किया और चंद्रिका, शशिकला और जागृृति ने जनजाति नृत्य प्रस्तुत किया। एम. ए. छत्तीसगढ़ी की छात्रा ने पंडवानी प्रस्तुत की. पूर्व छात्र समिति की ओर से विभाग को  प्रो. चितरंजन कर ने 50,000/- का पुस्तक दान देने की घोषणा की साथ ही जयप्रकाश शर्मा ने अलमारी देने की घोषणा की। कार्यक्रम में विभागाध्यक्ष प्रो. शैल शर्मा और शिक्षकगण डाॅ. मृणालिनी करर्मोेकर, डाॅ. आरती पाठक, डाॅ. कौस्तुभ मणि द्विवेदी, डाॅ. सरोज चक्रधर, डाॅ. कुमुदनी घृतलहरे और डाॅ. वंदना कुमार, रामानुज शर्मा, डाॅ. सुधीर शर्मा, डाॅ. प्रवीण शर्मा आदि उपस्थित थे रहे.