Supreme Court: सांस्कृतिक मतभेदों के कारण देश में लगातार बढ़ रहे मनमुटाव के बीच देश के शीर्ष न्यायालय सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में केरल के दो छात्रों से मारपीट की घटना पर चिंता जताते हुए कहा कि हम एक देश हैं। हिंदी बोलने को मजबूर करना या लुंगी का मजाक उड़ाना बर्दाश्त नहीं है। हम सभी को देश की एकता से साथ कोई खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। देश की एकता बनाए रखना हम सभी का प्राथमिक कर्तव्य है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने हाल ही में दिल्ली में एक व्यक्ति के साथ हुई उस घटना का जिक्र किया। जिसमें छात्रों को हिंदी बोलने के लिए मजबूर किया गया था। पारंपरिक पोशाक लुंगी पहनने पर उनका मजाक उड़ाया गया था। यह घटना लाल किले के पास हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को नसीहत देते हुए कहा कि ऐसे सांस्कृतिक और नस्लीय भेदभाव के मामलों को लेकर गंभीर होना चाहिए। जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे की बेंच ने कहा, देश में सांस्कृतिक और नस्लीय भेदभाव से लोगों को निशाना बनाना दुखद है।
सांस्कृतिक भिन्नता के आधार पर निशाना न बनाएं
मंगलवार को सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा, निगरानी कमेटी बन चुकी है। अब याचिका में कुछ नहीं बचा। याचिकाकर्ता के वकील गैचांगपाउ गांगमेई ने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा, पूर्वोत्तर के लोगों के साथ भेदभाव और बहिष्कार की घटनाएं अब भी हो रही हैं। बेंच ने कहा, ‘हमने अखबार में पढ़ा कि दिल्ली में एक केरल निवासी को लुंगी पहनने पर मजाक का सामना करना पड़ा। यह अस्वीकार्य है। हम मिल-जुलकर रहते हैं। सांस्कृतिक भिन्नता के आधार पर निशाना किसी को निशाना नहीं बनाना चाहिए।
केंद्र को दिया था रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश
कोर्ट ने इस याचिका में पहले भी कई आदेश पारित किए हैं। 1 मई 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि 2016 में गठित मॉनिटरिंग कमेटी के कार्यों पर एक अपडेटेड स्थिति रिपोर्ट दाखिल की जाए। यह कमेटी इसलिए बनाई गई थी, ताकि नस्लीय भेदभाव और अपमान की शिकायतों की निगरानी की जा सके।
जानें क्या है पूरा मामला
दोनों छात्र दिल्ली यूनिवर्सिटी के जाकिर हुसैन कॉलेज के प्रथम वर्ष के छात्र हैं। उन्हें पुलिस और स्थानीय लोगों ने पीटा। कोर्ट 2015 में दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था। यह याचिका अरुणाचल प्रदेश के छात्र नीडो तानिया की दिल्ली में मौत के बाद दायर की गई थी। कोर्ट ने तब केंद्र को एक कमेटी बनाने का निर्देश दिया था। कमेटी को नस्लीय भेदभाव, अत्याचार और हिंसा पर सख्त कार्रवाई करने के अधिकार दिए गए थे। साथ ही, इस तरह मामलों को रोकने के उपाय सुझाने को कहा गया था।
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