प्रदीप गुप्ता, कवर्धा. कबीरधाम जिले के घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र के ग्रामीणों से लाखों रुपए लेकर फर्जी वन अधिकार पट्टा बनाकर देने वाले दो शातिर ठग को पुलिस ने गिरफ्तार किया है. इस मामले में सबसे अहम बात यह है कि फर्जीवाड़े में आरोपियों ने बाकायदा कलेक्टर, डीएफओ समेत अन्य अधिकारियों की सील बनाकर हस्ताक्षर भी किए हैं. इस मामले की शिकायत के बाद दो आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है. वहीं दो फरार है, जिसकी पतासाजी की जा रही है.
एडिशनल एसपी पुष्पेन्द्र सिंह बघेल ने बताया कि रेंगाखार जंगल क्षेत्र के 8 गांव के 19 ग्रामीणों से 3.34 लाख रुपए लेकर चार आरोपियों ने फर्जी तरीके से वन अधिकार पट्टा बनाकर बांटा था. वन परिक्षेत्र अधिकारी रेंगाखार के प्रतिवेदन के आधार पर वनपाल प्रीतम दास मानिकपुरी वन परिक्षेत्र रेंगाखार की रिपोर्ट पर एफआईआर दर्ज की गई. 29 जून को फर्जी वन अधिकार पट्टा 19 ग्रामीण के नाम पर बनाकर धोखाधड़ी करने वाले आरोपी मन्नूलाल पिता रामदयाल कुशरे (34) निवासी मुढ़ीपार, मुकेश यादव पिता भीमूलाल यादव (32) निवासी नगवाही, देवीलाल कुशरे निवासी रेंगाखार नयाबाड़ा, रामकुमार यादव निवासी मुढ़ीपार के खिलाफ धारा 420, 467, 468 , 47 व 34 के तहत मामला दर्ज किया है.
जांच में और भी खुलासे होने की संभावना
वर्तमान में आरोपी मजूलाल व मुकेश यादव को गिरफ्तार किया गया है. इन्हें मंगलवार को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से रिमांड पर भेज दिया गया. दो अन्य आरोपी देवीलाल कुशरे व रामकुमार यादव की पतासाजी की जा रही है. वहीं कवर्धा वन विभाग के DFO शशि कुमार का कहना है कि रेंगाखर क्षेत्र में फर्जी तरीके से वन अधिकार पत्रक बनाए जाने की सूचना मिलने पर पुलिस में शिकायत की गई. इस मामले में दो आरोपियों की गिरफ्तारी हुई है. अभी वन विभाग और पुलिस विभाग संयुक्त रूप से जांच कर रही है. आगे और खुलासे होने की संभावना है.
इस तरह फर्जीवाड़े का हुआ खुलासा
वन परिक्षेत्र रेंगाखार व खारा अंतर्गत कुछ लोगों द्वारा ग्रामीणों को झांसा देकर पैसे लेकर फर्जी वन अधिकार पत्र बनाने का धंधा चल रहा था. पिछले वर्ष जुलाई में तत्कालीन परिक्षेत्र अधिकारी रेंगाखार विजयंत तिवारी व वन स्टाफ ने अतिक्रमण हटाने के लिए जब ग्राम तेंदुटोला पहुंचे तो अतिक्रमणकारियों ने वन पत्र दिखाया. किसानों ने बताया कि वह पैसा देकर बनवाए हैं. देखते ही अधिकारी समझ गए कि यह कूटरचना से बनाया गया है, जिसे जब्त कर जांच की गई. जांच में पता चला कि वन अधिकार पत्र पूरी तरह फर्जी है.
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