सुप्रिया पांडेय, रायपुर। छत्तीसगढ़ की माटी की खुशबू, लोकगीतों की गूंज और परंपराओं की झंकार… कुछ ऐसा दृश्य था रायपुर के टिकरापारा स्थित हरदेव लाल मंदिर परिसर का, जहां “उजियार” कार्यक्रम का आगाज हुआ। दोपहर 12 बजे से शाम 4 बजे तक चली विचार गोष्ठी में विद्वानों ने एक स्वर में कहा कि छत्तीसगढ़ को समझना है तो छत्तीसगढ़ी पढ़ना, लिखना और बोलना जरूरी है। साहित्यिक चर्चा ने इस “उजियार” को विचारों की रौशनी से भी भर दिया। शाम ढलते ही मंच पर लोकनृत्य की रंगीली छटा बिखरी। सुवा, पंथी, करमा, ददरिया और राउत नाचा जैसे छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य की थाप पर पूरा शहर झूम उठा।
‘उजियार’ छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति का संगम : वर्णिका शर्मा
कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि राज्य बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डॉ. वर्णिका शर्मा शामिल हुईं। उन्होंने “उजियार” के आयोजन पर बधाई देते हुए कहा कि यह आयोजन छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति का संगम है। यह सांस्कृतिक जागरण का मंच है, जो हमारी जड़ों से जोड़ता है। हमें अपनी संस्कृति पर गर्व होना चाहिए और युवा पीढ़ी की जिम्मेदारी है कि इस विरासत को आगे बढ़ाएं। कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध साहित्यकार मीर अली मीर और न्यूज 24 एमपी-सीजी के राजनीतिक संपादक डॉ. वैभव शिव पाण्डेय भी विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल हुए। यह आयोजन केवल एक सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की आत्मा को उजियार करने का एक प्रयास था। उस अपनापन का, जो छत्तीसगढ़ की संस्कृति की सबसे बड़ी पहचान है।


रामनामी समाज के लोग भी आयोजन का हिस्सा बने
“उजियार” के संस्थापक नागेश वर्मा की सोच और मेहनत ने परंपरा, संस्कृति और लोकभावना को एक ही मंच पर उजियारा कर दिया, जिससे यह आयोजन छत्तीसगढ़ की मिट्टी की आत्मा को सजीव कर गया। मंदिर परिसर में कदम रखते ही मिट्टी के घर की प्रदर्शनी, धान की बाली से बनी कलाकृतियां, पारंपरिक व्यंजन और लोक वेशभूषा के रंगीन स्टॉल जैसे बीते वक्त का जीवंत चित्र खींच रहे थे। कहीं महिलाएं पारंपरिक साड़ी में “सुवा नाच” की तैयारी कर रही थीं, तो कहीं बच्चे “बैलगाड़ी झांकी” देखकर उत्साह से भर उठे। छत्तीसगढ़ के रामनामी समाज के लोग भी इस आयोजन का हिस्सा बने, जिन्होंने अपनी पहचान और भक्ति को लोकगीतों में पिरोकर प्रस्तुत किया।

लोककला प्रदर्शनी रहा आकर्षण का केंद्र
इससे पहले 5, 6 और 7 नवंबर को लोकनृत्य की विशेष ट्रेनिंग दी गई थी, ताकि हर कदम में लोक नृत्य की लय और लोक की गरिमा झलके। “उजियार” का मुख्य आकर्षण रहा लोककला प्रदर्शनी, जिसमें चित्रकला, मूर्तिकला, बांस और धान से बने शिल्पों के साथ-साथ “किताब कोठी” का स्टॉल भी लोगों के लिए सीख का केंद्र बना। यहाँ लोगों ने छत्तीसगढ़ी भाषा और साहित्य की गहराई को महसूस किया। वही भाषा जो खेतों की मेड़ों से लेकर मंदिर की घंटियों तक गूंजती है।
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