देहरादून। उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत ने भालू और गुलदार को लेकर भाजपा सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि खैर, मैं गुलदार पर आता हूं। मैं, सरकार से कहना चाहता हूं कि यदि भालू और गुलदार को री-लोकेट करना—मतलब जिन राज्यों में इनकी संख्या कम है, वहां इनको भेजने के लिए—केंद्रीय वन मंत्रालय से अनुमति लेनी चाहिए। उत्तराखंड में इतनी ही संख्या में भालू और गुलदार रहने देने चाहिए, जितनों के लिए जंगलों में खाद्य पदार्थ उपलब्ध हैं।

हमारे गांव का बचपन यूं ही घर में कैद हो गया था

हरीश रावत ने कहा कि यदि री-लोकेट नहीं कर सकते, तो इनका बंध्याकरण करो। बंदरों और लंगूरों का बंध्याकरण बहुत आवश्यक है, नहीं तो आप लाख कहिए—खेती तो ग्रामीण क्षेत्रों में रसातल पर चली ही गई है। बचपन और स्वाभाविक जीवन भी लोगों के लिए किस्सों और कहानियों में रह जाएगा। यूं बहुत कुछ हद तक हमारे गांव का परिवेश, फिर मोबाइल की लत और ग्रामीण खेलों का अस्त हो जाना—जो ग्रामीण खेल पहले हमारे बचपन को खेलनरी बनाते थे—वह ग्रामीण खेल भी अस्त हो चुके हैं। तो हमारे गांव का बचपन यूं ही घर में कैद हो गया था।

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डायबिटीज भी अब गांवों में पहुंच रही

हरीश रावत ने आगे कहा कि रही-सही कसर अब गुलदार ने पूरी कर दी है। महिलाओं का जो 5 किलो मुफ्त का राशन है, इस राशन ने हमारी ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं पर बड़ा दुष्प्रभाव डाला है। पहले खाद्य सुरक्षा योजना के तहत जो 2 किलो गेहूं और 3 किलो चावल मिलता था, उसमें कुछ 2 और 3 को अर्जित करने के लिए मनरेगा के तहत काम करने के लिए महिलाएं भी निकलती थी और पुरुष भी निकलते थे।आज अब काम पर हम बाहर निकल नहीं रहे हैं, जिस कारण हमारे घुटने जाम हो जा रहे हैं, हमारे शरीर का वजन बढ़ जा रहा है। जिस डायबिटीज को हमारे गांवों में वर्षों-वर्षों प्रवेश नहीं मिला था, वह डायबिटीज भी अब गांवों में पहुंच रही है।