उत्तरकाशी. उत्तराखंड कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने उत्तरकाशी में आई आपदा को लेकर धामी सरकार पर करारा हमला बोला है. उन्होंने एक्स पर पोस्ट कर कहा, 2 दिन तक प्रशासन ने मुझे लैम्चागाड़ से आगे नहीं बढ़ने दिया. सिर्फ़ मुझे ही नहीं, बल्कि उन जुझारू पत्रकारों को भी रोक दिया, जो सच दिखाने का साहस रखते हैं. वहीं सरकार के “चेहते” पत्रकारों को हेलीकॉप्टर से धराली भेजा गया, ताकि उनकी तस्वीरें और रिपोर्टें सरकार के मनचाहे रंग में रंगी रहें. लेकिन जो सच्चाई दिखा सकते थे, उन्हें रोक दिया गया.
इसे भी पढ़ें- CM पुष्कर धामी जी… एक ही व्यक्ति के जानने वाले 40 लोग हैं गायब, राजनीति और प्रचार के चक्र से बाहर निकलिए, कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा का तंज
आगे करन माहरा ने कहा, ये सिर्फ़ मुझे रोकने की बात नहीं थी, ये उस सच्चाई को दबाने की कोशिश थी, जिसे अगर पहले दिन से पूरी दुनिया जान लेती, तो शायद कई ज़िंदगियां बच सकती थीं. भटवाड़ी और उत्तरकाशी में आपदा पीड़ितों के परिजनों को भी रोक दिया गया. सोचिए… जिनके अपने मलबे में दबे हैं, जो यह भी नहीं जानते कि उनके परिवार के लोग ज़िंदा हैं या नहीं,
उन्हें अपने ही लोगों को देखने से, ढांढस बंधाने से रोक दिया गया. क्या इससे बड़ा अमानवीय व्यवहार हो सकता है? और सबसे दर्दनाक बात है कि यह सब टाला जा सकता था.
इसे भी पढ़ें- ‘जब उसका इन्साफ होता है, तो फिर…’, उत्तरकाशी आपदा को लेकर पूर्व सांसद एसटी हसन ने दिया विवादित बयान, मच गया बवाल
करन माहरा ने ये भी कहा, लैम्चागाड़ में 4-5 लकड़ियों की बल्लियां डालकर अस्थायी पुल बनाया जा सकता था. इससे SDRF-NDRF के जवान, डॉक्टर, राहत सामग्री, सब धराली पहुंच सकते थे. लेकिन प्रशासन ने यह कदम उठाने में दो दिन नहीं… अनंत विलंब किया है. पहले दिन ही यह हो जाता, तो कई मासूम ज़िंदगियाँ बचाई जा सकती थीं.मैंने पैदल 50 किलोमीटर से ज़्यादा का सफ़र तय किया. मैं कोई प्रशिक्षित रेस्क्यू कर्मी नहीं हूं, न कोई एथलीट. अगर मेरे जैसा अनट्रेंड व्यक्ति ये सफर कर सकता है, तो क्या सरकार अपने जवानों, युवा अधिकारियों और संसाधनों को नहीं भेज सकती थी? या फिर उनका काम सिर्फ़ हवाई दौरे करना और फ़ोटो खिंचवाना रह गया है?
इसे भी पढ़ें- जितना पैसा पंचायत में धन शक्ति के बल पर बहुमत बनाने में खर्च कर रहे हैं उस पैसे को राज्य आपदा कोष में जमा करें- हरीश रावत
करन माहरा ने आगे कहा, धराली पहुंचा तो वहां ज़िंदगी ठहरी हुई मिली. सिर्फ़ मलबा नहीं, बल्कि टूटे हुए सपनों का ढेर था.
एक मां थी, जिसने अपने बेटे को खो दिया… एक पिता था, जिसकी पूरी रोज़ी-रोटी बह गई… कुछ ऐसे लोग थे जिनके पास अब न घर है, न रोज़गार, न अपने. कितने लोग लापता हैं? कितने मृत? कोई सही आंकड़ा सरकार नहीं बता रही है, क्योंकि गिनने वाले लोग हेलीकॉप्टर से फ़ोटो खींचने में व्यस्त हैं. लोगों की आंखों में सिर्फ़ डर और आँसू थे. कुछ बच्चे ऐसे थे, जिनके स्कूल बैग और किताबें भी पानी में बह गईं. कुछ बुज़ुर्ग ऐसे थे, जो अपने घर के दरवाज़े तक का रास्ता पहचान नहीं पा रहे थे, क्योंकि उनका घर अब वहाँ था ही नहीं.
इसे भी पढ़ें- नशा, पैसा और सेक्स: ड्रग्स के लिए कई मर्दों से संबंध बनाती थी नाबालिग, 19 लोगों को हो गया ‘AIDS’, पत्नियां भी हुईं संक्रमित
करन माहरा ने कहा, वहां फंसे 40-50 मज़दूर थे जिनके पास न पैसे थे, न खाना, न ठहरने की जगह. मैंने उन्हें विश्वास दिलाया कि वे अकेले नहीं हैं, और उन्हें अपने साथ सुरक्षित स्थान तक लेकर आया. धराली का दर्द अब सिर्फ धराली का नहीं है. ये हम सबका दर्द है, हमारी संवेदनाओं का इम्तिहान है। लेकिन अफ़सोस, सरकार इस इम्तिहान में बुरी तरह असफल हुई है. उन्होंने राहत से ज्यादा, सच्चाई को रोकने में मेहनत की. मैं आज धराली से लौटा हूं, लेकिन वहां के लोगों की आंखों में जो आंसू मैंने देखे, वो मेरे साथ रहेंगे, जब तक न्याय, राहत और सम्मान उन्हें नहीं मिल जाता. धराली… तुम्हारा दर्द मेरी सांसों में बस गया है. मैं तुम्हारी आवाज़ बनूंगा, और तब तक बोलता रहूंगा, जब तक तुम्हारे साथ न्याय न हो जाए.
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- मनोरंजन की बड़ी खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक