रायपुर. चार साल के मासूम बचपन में दायें पैर के असहनीय दर्द से परेशान बच्ची के पिता सही इलाज के अभाव में इधर-उधर भटकने को मजबूर हो गए थे. तभी बलौदाबाजार जिले के एक डॉक्टर ने बीमारी के संभावित लक्षणों के आधार पर उच्च चिकित्सकीय संस्थान डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय के रेडियोलॉजी विभाग में जांच के लिए भेजा. यहां पर जांच के बाद बच्ची के दायें पैर में ओस्टियोइड ओस्टियोमा नामक हड्डी से संबंधित बीमारी की पुष्टि हुई. रेडियोलॉजी विभाग के इंटवेशनल रेडियोलॉजिस्ट डॉ. (प्रो.) विवेक पात्रे की टीम ने बिना चीर फाड़ के सुई की सहायता से सीटी गाइडेड रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन प्रक्रिया के जरिए चार वर्षीय मासूम के पैर दर्द की समस्या से हमेशा के लिए निज़ात दिलाई. ठीक ऐसे ही मध्यप्रदेश के नैनपुर जिले से आए आठ वर्षीय बालक के बायें पैर के जांघ में स्थित ओस्टियोइड ओस्टियोमा का उपचार इसी विधि से किया. डॉ. विवेक पात्रे के अनुसार दोनों मासूम मरीज अब ठीक हैं और अपनी पढ़ाई-लिखाई कर रहे हैं. Read More- CG ELECTION 2023: चुनावी रण में दिग्गज नेताओं की होगी एंट्री, BJP ने की चुनाव के लिए कार्यक्रम प्रभारियों की नियुक्ति, जानिए किसे-किसे मिली जिम्मेदारी…
क्या है ओस्टियोइड ओस्टियोमा
डॉ. विवेक पात्रे कहते हैं कि ओस्टियोइड ओस्टियोमा का केंद्र नाइडस या निडस है, जिसमें बढ़ती ट्यूमर कोशिकाएं, रक्त वाहिकाएं और कोशिकाएं शामिल होती हैं. नाइडस के चारों ओर एक हड्डी का आवरण या खोल (शेल) होता है. ये छोटे ट्यूमर होते हैं जो आमतौर पर मानव शरीर की लम्बी हड्डियों जैसे जांघ की हड्डी (फीमर), टिबिया (पिंडली) में विकसित होते हैं. यह नॉन-कैंसरस यानी बिना कैंसर वाले हड्डी का ट्यूमर है और पूरे शरीर में नहीं फैलता लेकिन ये काफ़ी दर्दनाक होते हैं.
ऐसे किया गया उपचार
उन्होंने बताया कि, ट्यूमर के केंद्र भाग नाइडस में प्रोस्टाग्लाइडिन नामक केमिकल रिलीज होता है, जो कि असहनीय दर्द का कारण बनता है. इसको हम सीटी स्कैन की सहायता से देखते हुए उस जगह की हड्डी के बीच में (ट्यूमर के बीच में) सुई डालते हैं. इस सुई को मेडिकल भाषा में बोन बायोप्सी नीडिल कहते हैं. यह नीडिल विशेष प्रकार की होती है, जिसमें सुई के अंदर सुई रहती है. उपचार के दौरान नीडिल के अंदर वाली सुई को निकालकर रेडियो फीक्वेंसी एब्लेशन मशीन का नीडिल (प्रोब) डाल देते हैं. मशीन की सहायता से उच्च ऊर्जा युक्त तरंगों की मदद से ट्यूमर को अंदर ही अंदर नष्ट कर देते हैं. इस प्रक्रिया में अधिकतम आधे से एक घंटे समय लगता है. उपचार के बाद मरीज को लम्बे समय तक भर्ती करने की आवश्यकता नहीं होती है. यह उपचार स्पाइनल एनेस्थेसिया की मदद से किया जाता है, जिससे की रोगी को तनिक भी दर्द नहीं होता. उपचार के बाद मरीज सामान्य जिंदगी जी सकता है. Read More- CG BREAKING : दशहरा, दीपावली, शीतकालीन और ग्रीष्मकालीन अवकाश घोषित, शिक्षा विभाग ने जारी किया आदेश, जाने कितने दिन मिलेगी छुट्टी
इलाज के बाद स्कूल जाने को तैयार
मासूम बच्ची के पिता के अनुसार, बीमारी के कारण बच्ची का स्कूल जाना छूट गया. सही इलाज के अभाव में इधर-उधर भटकते रहे. बाद में रेडियोलॉजी विभाग तक पहुंचने में सफल रहे. यहां पर डॉक्टरों ने सहयोग किया और मेरी बच्ची को सही समय पर सही इलाज मिला. आज बच्ची अपने उम्र के बच्चों के साथ खेलकूद रही है और स्कूल जाने के लिए तैयार है. हम लोग फॉलोअप के लिए यहां आए थे और डॉक्टरों का कहना है कि बच्ची अब बिल्कुल ठीक है. बच्ची का उपचार स्वास्थ्य सहायता योजना के अंतर्गत निशुल्क हुआ.
मध्यप्रदेश के नैनपुर जिले के इलाज के लिए पहुंचे रेडियोलॉजी विभाग
8 वर्षीय मासूम बालक के दर्द की दास्तान काफी मर्मस्पर्शी है. दर्द से बालक इतना परेशान हो गया था कि धीरे-धीरे बायें पैर से लंगड़ाकर चलने लगा था. उसके इस असहनीय दर्द से घरवाले भी काफी परेशान रहते थे. इलाज के लिए भटकते-भटकते मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ पहुंचे और अम्बेडकर अस्पताल के रेडियोलॉजी विभाग में उनके बच्चे के दर्द का उपचार मिल गया. बालक के पिता के मुताबिक जर्मनी से आई मशीन के जरिए मेरे बच्चे का इलाज बहुत ही अच्छे ढंग से हुआ और अब उसका लंगड़ाकर चलना बंद हो गया. बच्चा अभी वार्ड से डिस्चार्ज होकर घर चला गया. Read More- भोपाल रेल मंडल में तीसरी रेल लाइन के कारण 40 से ज्यादा ट्रेनों के बदले रूट, अमरकंटक एक्सप्रेस चलेगी दुर्ग-इटारसी के बीच
नज़रअंदाज न करें छोटे बच्चों के पैरों का दर्द
छोटे बच्चों के पैर में रह रहकर उठने वाले दर्द को कभी नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए. विशेषकर रात के समय में उठने वाले पैर दर्द को क्योंकि कई बार यह बच्चों में होने वाले ओस्टियोइड ओस्टियोमा नामक हड्डी की बीमारी के कारण भी हो सकता है. दर्द विशेषकर रात में ही होता है, जिसके कारण कई बार परिवार के लोग इस दर्द को नज़रअंदाज कर देते हैं, जो आगे चलकर घातक साबित हो सकती है.
पहला शासकीय संस्थान
अम्बेडकर अस्पताल के अधीक्षक एवं रेडियोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. एसबीएस नेताम के अनुसार, संभवतः राज्य का यह पहला शासकीय संस्थान है, जहां इस बीमारी का उपचार बिना चीर-फाड़ के सुई के जरिए किया जाता है. उपचार के लिए रेडियो फ्रीक्वेंसी एब्लेशन मशीन के जरिए न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया अपनाई जाती है. जर्मनी से आयातित मशीन के जरिए इस बीमारी का इलाज किया जा रहा है.
टीम में ये रहे शामिल
इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट डॉ. विवेक पात्रे के साथ रेसीडेंट डॉक्टर अतुल कुमार, डॉ. शौर्य चौधरी, डॉ. लीना साहू, डॉ. मंजू कोचर, एनेस्थेटेस्टि डॉ. ए. शशांक, डॉ. नंदिनी जटवार, रेडियोग्राफर अब्दुल ख़ालिक, रूप सिंह, नर्सिंग केयर के लिए आकाश और यश शामिल रहे.
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