Bhupender Yadav On Aravalli Range: अरावली पर्वतमाला की नई परिभाषा को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर देश में बवाल मचा हुआ है। पर्यावरण प्रेमी और देश के आम लोग इसे अरावली पर्वतमाला को खत्म करने की शुरुआत कह रहे हैं। इसे लेकर देश में कई जगह प्रदर्शन भी गो रहे हैं। अरावली पर्वतमाला की नई परिभाषा को लेकर मचे बवाल के बीच केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव दावा किया है कि 98% अरावली सुरक्षित है। वहां खनन की इजाजत नहीं दी गई है। साथ ही उन्होंने राजस्तान की पूर्ववर्ती गहलोत सरकार पर भी निशाना साधा है।
दरअसल, अरावली पर्वतमाला को लेकर सुप्रीम कोर्ट की नई परिभाषा को स्वीकृति देने के बाद से सियासत चरम पर है। नई परिभाषा के मुताबिक 100 मीटर या उससे ज्यादा ऊंचाई वाली भू-आकृतियों को ही ‘अरावली’ माना जाएगा। कई पर्यावरण प्रेमी इसका विरोध कर रहे हैं।

इसपर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि अरावली को लेकर कुछ लोग झूठ बोल रहे हैं और भ्रम फैला रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने परिभाषा स्वीकृत करने के साथ ही कहा है कि अरावली में कोई नई माइनिंग लीज नहीं दी जाएगी। पहले जिला अनुसार मैनेजमेंट साइंटिफिक प्लान बनेगा, दूसरा साइंटिफिक प्लान बनने के बाद जो ICFRE हैं, वो उसका इवेल्युएशन करेगी। फिर माइनिंग देते समय सस्टेनेबिलिटी को देखा जाएगा।
भूपेंद्र यादव ने कहा कि अरावली में अवैध खनन की समस्या मुख्य रूप से राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार के कार्यकाल के दौरान रही है। उन्होंने दावा किया कि सोशल मीडिया पर जो खदानों की तस्वीरें वायरल की जा रही हैं, वे सभी कांग्रेस शासन के दौर की हैं। भूपेंद्र यादव ने कहा, ‘ऑनलाइन जिन तस्वीरों को इंफ्लुएंसर दिखा रहे हैं, वे उन खदानों की हैं जो कांग्रेस सरकार के समय संचालित थीं। आठ-दस साल तक खनन हुआ और फिर उन्हें ऐसे ही छोड़ दिया गया। पर्यावरण मंत्री ने अरावली की नई परिभाषा को स्पष्ट करते हुए बताया कि अब दो या उससे अधिक पहाड़ियों का समूह, जिनकी ऊंचाई कम से कम 100 मीटर हो और जो एक-दूसरे से 500 मीटर के भीतर स्थित हों, उन्हें अरावली का हिस्सा माना जाएगा। इसके अलावा, इन पहाड़ियों के बीच की घाटियां, ढलानें और अन्य सभी भू-आकृतियां, उनकी ऊंचाई चाहे जो भी हो, संरक्षित क्षेत्र में आएंगी।
दिल्ली, गुरुग्राम और फरीदाबाद समेत अरावली के कई हिस्सों में खनन प्रतिबंधित
भूपेंद्र यादव ने यह भी कहा कि दिल्ली, गुरुग्राम और फरीदाबाद समेत अरावली के कई हिस्सों में खनन पहले से ही प्रतिबंधित है। इसके अलावा चार टाइगर रिजर्व, 20 वन्यजीव अभयारण्य और इको-सेंसिटिव जोन से एक किलोमीटर के दायरे में भी खनन की अनुमति नहीं है। जब उनसे पूछा गया कि क्या खनन को पर्यावरण संरक्षण से ऊपर रखा जा रहा है और पूरे अरावली क्षेत्र को ‘नो-गो जोन’ घोषित करने की मांग क्यों नहीं मानी गई? तो भूपेंद्र यादव ने कहा कि अरावली सदियों से सभ्यता का केंद्र रही है. यहां किले हैं, नदियां हैं और लोग रहते आए हैं। अरावली के सिर्फ 0.19 प्रतिशत क्षेत्र में ही खनन हो रहा है, जैसे मार्बल निकालना. और वह भी जहां सबसे ज्यादा है, वहां सिर्फ 0.1 प्रतिशत क्षेत्र में खनन हो रहा है।
इस तरह नापी जाती है पहाड़िय़ों की ऊंचाई
भूपेेंद्र यादव ने पहाड़ी की ऊंचाई मापने का तरीका बताते हुए कहा कि एक पर्वत मतलब सिंगल यूनिट अगर है तो 100 मीटर की ऊंचाई होनी चाहिए, लेकिन ऊपर से नहीं होनी चाहिए। उसका नीचे तक का धरातल होना चाहिए। ऐसे में उसके फैलाव में पूरा आ जाएगा और उसके आस-पास की सभी छोटी-मोटी पहाड़ियां आ जाएंगी। नीचे वहां होगा, जो उसके लैंडफॉर्म का सबसे नीचे होगा। अब फिर अरावली रेंज किसे कहेंगे? तो 200 मीटर की जो पहाड़ियां हैं, उसके बीच का जितना भी भू भाग है, छोटी-बड़ी जो भी पहाड़ियां हैं, वो सब अरावली रेंज है। तो इससे तो 90 प्रतिशत भाग स्वयं अरावली और अरावली रेंज में आ जाता है।
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