मनेंद्रगढ़। छत्तीसगढ़ में महुआ पेड़ की संख्या घटती जा रही है। अगर जंगल के बाहर इनके पुनरुत्पादन पर ध्यान नहीं दिया गया तो ये जल्द ही खत्म हो जाएंगे। ऐसे में मनेंद्रगढ़ वनमंडल में इस वर्ष वनमंडलधिकारी मनीष कश्यप की पहल पर पहली बार गांव के बाहर खाली पड़ी जमीन और खेतों में महुआ के पौधे लगाए जा रहे है, जिसकी सुरक्षा ट्री गार्ड से हो रही है। अब तक 30 हजार महुआ के पौधे लगाए जा चुके हैं। ग्रामीणों में पौधे के साथ ट्रीगार्ड मिलने से इस योजना में जबरदस्त उत्साह है।

छत्तीसगढ़ में संभवतः पहली बार महुआ पर इतना विशेष ध्यान दिया जा रहा है। 10 वर्ष में ही महुआ परिपक्व हो जाता है। एक महुआ के पेड़ से आदिवासी परिवार औसतन 2 क्विंटल फूल और 50 किलो बीज प्राप्त कर लेता है, जिसकी क़ीमत लगभग 10 हजार है।

महुआ पेड़ों की घटती संख्या चिंता का विषय है। सबसे बड़ी समस्या इनकी पुनरुत्पादन की है।जंगल में तो महुआ पर्याप्त है पर आदिवासियों के अधिकतर महुआ का संग्रहण गांव की खाली पड़ी जमीन और खेत के मेड़ो पर लगे महुआ से होती है। अगर बस्तर और सरगुज़ा के किसी गांव में जाये तो उनके खेतों के पार और खाली जमीन में सिर्फ बड़े महुआ के पेड़ ही बचे दिखते हैं। छोटे और मध्यम आयु के पेड़ लगभग नगण्य होती हैं।

महुआ संग्रहण से पहले जमीन साफ करने के लिए आग लगाई जाती है उसी के कारण एक भी महुआ के पौधे जिंदा नहीं बच पाता। ग्रामीण महुआ के सभी बीज को भी संग्रहण कर लेते है। ये भी एक कारण है महुआ के ख़त्म होने का। आखिर बड़े महुआ पेड़ कब तक जीवित रह पाएंगे?


छत्तीसगढ़ के महुआ पेड़ बूढ़े हो रहे हैं। महुआ पेड़ की औसत आयु 60 वर्ष है। अगर जंगल के बाहर इनके पुनरुत्पादन पर ध्यान नहीं दिया गया तो ये जल्द ही खत्म हो जाएंगे।