पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद। छत्तीसगढ़ वन विभाग मध्य प्रदेश के शोधकर्ता और अवैध शिकार विरोधी विशेषज्ञ की मदद से उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व में “वृक्ष-जीव देव स्वरूप” के नाम से सर्वेक्षण कर रहा है. इस सर्वेक्षण की मदद से जानकारी एकत्रित की जा रही है कि क्षेत्र के भीतर निवास करने वाला कौन सा समुदाय किस पौधे और जंगली जानवर की पूजा करता है. इसे भी पढ़ें : NIA ने जगदलपुर की विशेष अदालत में 3 माओवादियों के खिलाफ दाखिल किया चार्जशीट, जानिए पूरा मामला…

उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व (यूएसटीआर) न केवल दुर्लभ और लुप्तप्राय वन्यजीव प्रजातियों की एक बड़ी श्रृंखला का घर है, बल्कि विभिन्न पीवीटीजी (प्रिमिटिव वल्नरेबल ट्राइबल ग्रुप्स) और अन्य वन निवासी समुदायों का भी घर है, जिनका वनों और वन्यजीवों को स्थायी तरीके से संरक्षित करने और उनकी पूजा करने का एक लंबा इतिहास है. इसके अलावा यूएसटीआर महाराष्ट्र को ओडिशा से जोड़ने वाले टाइगर कॉरिडोर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

सर्वेक्षण ग्राम जांगड़ा, कुरूभाटा, पायलीखंड, बम्हनीझोला, उदंती, कोयबा, जुगाड़, अमाड, बड़गांव, बंजारीबाहरा, नागेश, करलाझर, देवझरमली, मोतीपानी और साहेबिन कछार में किया गया है. सर्वेक्षण से बहुत दिलचस्प तथ्य सामने आए हैं, जैसे – भुजिया जनजाति की उप जनजाति नागेश “सर्प” को देव स्वरुप मानते है, नेताम समुदाय “कछुआ” को देव स्वरुप मानते है, लोहार- विश्वकर्मा समुदाय “नीलकंठ” (भारतीय रोलर) पक्षी को देव स्वरुप मानते हैं.

गाढा-जगत “मोर” को देव स्वरुप मानते हैं. कमर-पहाड़िया “भालू” को देव स्वरुप मानते है, भुंजिया- सोरी “बाघ” की पूजा करते हैं, गोंड-ओटी “गोही- मॉनिटर लिज़ार्ड” को देव स्वरुप मानते है और मेहर-कश्यप “जंगली भैंसा” और “जंगली सूअर” को देव स्वरुप मानते है. केवल जानवरों की ही नहीं बल्कि पेड़-पौधों का भी अपना महत्व है. बरगद, कदंब, साजा, पीपल, आंवला, कुंभी, कसई, बेल, महुआ, वन तुलसी, पलाश, कुरवा (इंद्र जौ) जैसी वृक्ष प्रजातियों की भी पूजा की जाती है.

सर्वेक्षण का प्रभाव

सर्वेक्षण और संबंधित चर्चाएं वन-आश्रितों के बीच वन्यजीव और वन संरक्षण के प्रति व्यवहारिक परिवर्तन शुरू करने में सहायक रही हैं. अगले चरण में, इन गांवों में पूजे जाने वाले वन्यप्राणियों और वृक्षों को चित्रित करने वाली वॉल पेंटिंग बनायी जाएगी. पहले से ही “चारवाहा सम्मेलन” ने अवैध लकड़ी की कटाई और अवैध शिकार के मामलों पर जानकारी प्राप्त करने और अपराधियों को पकड़ने में सकारात्मक परिणाम देना शुरू कर दिया है, जो अन्यथा पैदल गश्त करने वाले कर्मचारियों की कमी और वामपंथी उग्रवाद की उपस्थिति के कारण रिपोर्ट नहीं की जा सकती थी.

70 के दशक से पहले था गेम रिजर्व

एक समय था, जब शीर्ष मांसाहारी वन्यप्राणी (बाघ, तेंदुए) के साथ-साथ शाकाहारी वन्यप्राणी (जंगली भैंसा, गौर, हिरण, सांभर, कोटरी आदि) अभयारण्य क्षेत्र में बड़ी संख्या में थे. ब्रिटिश काल और 1970 के दशक से पहले, यह क्षेत्र एक गेम रिजर्व था, जिसमें शुल्क के भुगतान पर बाघ (25 रुपए), जंगली भैंसा (200 रुपए), तेंदुए (10 रुपए) सहित जंगली जानवरों के शिकार की अनुमति थी.

अवैध शिकार-अतिक्रमण से बिगड़ा संतुलन

1974 में क्षेत्र को अभयारण्य और 2009 में टाइगर रिजर्व के रूप में अधिसूचित किया गया. तब यहां बहुत घना जंगल हुआ करता था. रिज़र्व के अंदर सौ से अधिक गाँव स्थित होने के बावजूद, पारिस्थितिकी तंत्र संतुलित होने के कारण मानव-पशु संघर्ष नगण्य था. लेकिन अवैध शिकार, अतिक्रमण और अवैध कटाई के कारण यह संतुलन बिगड़ गया है.

ओडिशा से लगी सीमा ने बढ़ाई समस्या

इसके अलावा ओडिशा राज्य के साथ 125 किलोमीटर लंबी छिद्रपूर्ण सीमा ने इन समस्याओं को बढ़ा दिया. वन अपराधों के कारण भविष्य में मानव-पशु संघर्ष बढ़ सकता है, एवं मिट्टी के कटाव बढ़ने और भूजल स्तर के कम होने सम्बन्धी समस्या को जन्म दे सकती है, क्योंकि यूएसटीआर विभिन्न महत्वपूर्ण नदियों जैसे महानदी, सोंदूर, सीतानदी आदि का उद्गम स्थान भी है.