Holi : होली की बात ही निराली है. होली उत्साह का पर्व है. देश के लगभग प्रत्येक भाग में यह त्योहार मनाया जाता है. इसे मनाने की सभी समाज और धर्मों में अलग-अलग परंपरा है, जो सदियों से मनाई जा रही है. इन्हीं में से एक खास परंपरा आदिवासी समाज की ओर से वर्षों से मनाई जा रही है.
पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में जलपाईगुड़ी जिले के अलीपुरद्वार कस्बे का नियम और परंपरा अलग है. जलपाईगुड़ी के अलीपुरद्वार की तुरतुरी पंचायत के संताल में सदियों पुरानी यह अनोखी परंपरा आज भी जस की तस है. यह अलग बात है कि अब समाज और लोकलाज के डर से लोग यहां भूल कर भी होली के दिन लड़कियों को रंग नहीं लगाते.
संताल आदिवासियों में पति-पत्नी के अलावा और किसी के साथ रंग-व्यवहार करने की अनुमति नहीं है. ऐसा करना सामाजिक व्यवस्था में दंडनीय अपराध है. अगर किसी पुरुष ने किसी लड़की को भूलवश भी लाल रंग से रंग दिया और समाज के लोगों ने ऐसा करते देख लिया तो रंग डालने वाले पुरुष को दंड दिया जाता है. लड़की को रंग डालने को संताल आदिवासी जबरन उसकी मांग भरने के समान मानते हैं.
ऐसी घटना के बाद आमतौर पर माझी-मोड़े (पंच) की बैठक होती है और लड़की को पूछा जाता है कि क्या वह उस पुरुष को पति के रूप में स्वीकार करेगी. अगर लड़की ने हां कहा तो रंग डालने वाले पुरुष से उसका विवाह कर दिया जाता है, फिर पुरुष चाहे या न चाहे, लेकिन अगर लड़की ने विवाह से मना कर दिया तो रंग डालने वाले पुरुष को पूरे गांव को भोज और आर्थिक दंड (संताल में डांडोम कहते हैं) देना ही पड़ता है. साथ ही लड़की को उसकी मांग के अनुरूप हर्जाना भी देना होता है.
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