विक्रम मिश्र,लखनऊ। उत्तर प्रदेश की सियासत में हाशिये पर गई बसपा फिर से अपने खोए हुए जनाधार को पाने के लिए बेताब है। यही कारण है कि बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने फिर से सोशल इंजीनियरिंग को अपना मुख्य अस्त्र बनाने की व्यवस्था की है। बसपा छोड़कर अन्य पार्टीयों में गए नेताओ को फिर से पार्टी के साथ जोड़ने के लिए मायावती ने रास्ते खोल दिये हैं। जबकि दलित मतदाताओं के साथ ब्राह्मण मतदाता को फिर से पार्टी का अंश बनाने के लिए कोशिशें जारी है।

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एससी मिश्र से नहीं बनी बात

बसपा में ब्राह्मण समाज को जोड़ने का पूरा दारोमदार कभी ब्रजेश पाठक पर था लेकिन उन्होंने पार्टी छोड़ दी। अब वो भाजपा सररकर में उपमुख्यमंत्री है। उनके पार्टी छोड़ने के बाद अब ये जिम्मेदारी सतीश चंद्र मिश्र के ऊपर थी। लेकिन वो इस काम को निभा नहीं सके और धीरे धीरे बसपा की नीतियों से ब्राह्मण छटक गए।

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नए साल में हो सकती है पुराने बसपाई की एंट्री

साल बीतने के बाद और नए साल के शुरुआत में ही कुछ पूर्व बड़े बसपाई नेताओ की एंट्री पार्टी में होने की संभावना है। जिसमे दो नामों की चर्चा है कि वो जनवरी के पहले सप्ताह में ही घर वापसी कर लेंगे। इसमें से एक मुस्लिम नेता फिलहाल कांग्रेस के साथ है और एक कभी भाजपा में मंत्री थे अब खुदकी पार्टी के मुखिया है।