विक्रम मिश्र, लखनऊ। यूपी भाजपा को जनवरी महीने के अंतिम सप्ताह तक नया अध्यक्ष मिलना तय है। लिहाजा इसको लेकर हर जरूरी बैठक की जा रही है। नए अध्यक्ष के रूप में बहुत से समीकरणों को साधते हुए कई नामो पर चर्चा हो रही है। जिसमें ब्राह्मण, ओबीसी और दलित चेहरे शामिल है। 2027 कि विधानसभा के मद्दे नज़र सरकार और संगठन की रस्साकशी पर विराम लगे इसके लिए ऐसे खास चेहरे की तलाश की जा रही है जो कि सीएम और दोनों डिप्टी सीएम के कैम्प में दखल रखता हो। साथ ही उसकी पहचान उसके समुदाय के साथ अन्य बिरादरियों के लिए भी ग्राह्य हो।

यूपी को लेकर खास समीकरण

भाजपा की उत्तर प्रदेश ईकाई की कोशिश है कि किसी भी सुरते हाल में खरमास के बाद यानी 15 जनवरी तक नया प्रदेश अध्यक्ष यूपी भाजपा को मिल जाए। ऐसे में योगी आदित्यनाथ और दोनों उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक के साथ सन्गठन के मुखिया भूपेंद्र चौधरी और महामंत्री धर्मपाल सिंह मौजूद थे। इस दौरान कई अहम नामों पर चर्चा हुई जिसमें की दौड़ में शामिल कुछ चेहरों की स्थिति बताते है।

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अमरपाल मौर्य : उमा भारती के सहयोगी के तौर पर अपनी सियासत की शुरुआत करने वाले अमरपाल मौर्य सबसे पहले केशव प्रसाद मौर्य की अध्यक्षता में सन्गठन में शामिल हुए। इसके बाद महेंद्र नाथ पांडेय और फिर स्वतंत्रदेव सिंह के बाद भूपेंद्र सिंह की टीम में शामिल है। आपको बता दें कि अभी मुख्य चुनाव अधिकारी/पर्यवेक्षक के तौर पर महेंद्र नाथ पांडेय ही है। ऐसे में उनके साथ काम करने का फल शायद मिल सकता है। केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक के साथ धर्मपाल सिंह के साथ नज़दीकी सम्बंध है। इसके अलावा लोकसभा में करारी शिकस्त के बाद भाजपा मौर्य शाक्य वोटरों को साधने की कोशिश में है।

बीएल वर्मा : कल्याण सिंह के बाद लोधियों का कोई बड़ा नेता उभरकर नहीं आया। हालांकि भाजपा की परम्परागत वोटबैंक में लोध वोटर्स आते है बावजूद इसके सपा अंदरखाने कल्याण सिंह के सपा में जाने और भाजपा छोड़ने वाले पुराने प्रकरण को हथियार बनाकर इस वोट बैंक में सेंधमारी करने की फिराक में है। फिलहाल बीएल वर्मा केंद्रीय मंत्री है। बसपा छोड़कर आये बीएल वर्मा लोधी फैक्टर के नेता है। इनके प्रदेश अध्यक्ष बनने से सपा के पीडीए को कुछ हद तक भाजपा रोकने में कामयाब हो सकती है। आपको बता दें कि लोधी समाज के लगभग 5 फीसदी से ज़्यादा वोट है।

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बाबूराम निषाद : भाजपा के कोटे से उच्च सदन में सदस्य है। इनकी पकड़ निषाद और मल्लाह वोट बैंक में अच्छी है। फिलहाल भाजपा के प्रदेश पदाधिकारी है। निषाद वोटबैंक भाजपा के साथ हमेशा से ही जुड़ा रहा है लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में निषाद वोटरों को रिझाने में सपा सफल हो गई थी। योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर में ही भाजपा प्रत्याशी रविकिशन शुक्ल और सपा कैंडिडेट काजल निषाद में अच्छी लड़ाई देखने को मिली थी। इसके अलावा निषाद पार्टी जो भाजपा सरकार में सहयोगी है उसके भी असर को कम करने की कोशिश अगर हुई तो ये अध्यक्ष बन सकते है ।

प्रकाश पाल : आरएसएस से लंबे समय से जुड़े होने का आशीर्वाद इनको मिल सकता है। फिलहाल कानपुर के क्षेत्रीय अध्यक्ष के रूप में काम कर रहे है। पाल गड़ेरिया भाजपा के परंपरागत वोट बैंक है लेकिन पाल बिरादरी को सन्गठन में कोई बड़ा पद नहीं मिला है। हालांकि ये ब्रजेश पाठक कैम्प के नज़दीकी है।

विनोद सोनकर : विनोद प्रदेश अध्यक्ष बनने की दौड़ में सबसे आगे माने जा रहे है। क्योंकि विनोद सोनकर समाज से आते है। उसका कोई भी नुमाइंदा योगी की टीम में नहीं है। जबकि खुद विनोद सोनकर पार्टी में राष्ट्रीय मंत्री पद को संभाल चुके है।
सोनकर वोटरों की अच्छी आबादी प्रदेश में है। जबकि सरकार से लगाये सन्गठन तक अभी कोई सोनकर समाज का प्रतिनिधि शामिल नहीं है। ऐसे में इनकी दावेदारी मजबूत मानी जा रही है।

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हरीश द्विवेदी : गोरखपुर से सटे बस्ती से दो बार लगातार सांसद रहे हरीश ब्राह्मण समाज से आते है और राष्ट्रीय मंत्री स्तर पर कार्य कर चुके है। योगी आदित्यनाथ की 7 साल की सरकार में हर बार ब्राह्मण विरोधी होने का नारा बुलंद होता है। ऐसे में ब्राह्मणों को साधने के लिहाज से ब्राह्मण कार्ड के तौर पर भाजपा इनका इस्तेमाल कर सकती है।

डॉक्टर दिनेश शर्मा : लखनऊ से मेयर और फिर उप मुख्यमंत्री तक का सफर तय करने वाले दिनेश इस वक्त राज्यसभा से सांसद है। वो आरएसएस से लंबे समय से जुड़े हुए है। दिनेश शर्मा अभी भाजपा से उच्च सदन के सदस्य है। ब्राह्मण समाज से आते है, और सबसे बड़ी बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बहुत करीबी है।

विद्या सागर सोनकर : विद्या सागर सोनकर आरएसएस से जुड़े होने के साथ सोनकर फैक्टर से आते है। साल 2019 और 22 में ये प्रदेश अध्यक्ष बनने के प्रबल दावेदार थे। सोनकर वोटबैंक में किसी की हिस्सेदारी नहीं होने के उद्देश्य से इनपर दांव भाजपा लगा सकती है।