लखनऊ. समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने किसान आंदोलन को लेकर बीजेपी सरकार पर हमला बोला है. उन्होंने कहा कि भाजपा बुनियादी मुद्दों से भटकाने वाली राजनीति करने में माहिर है. इस समय देश-प्रदेश के समक्ष सबसे बड़ा मुद्दा किसान आंदोलन है. भाजपा लंबे समय से चल रहे किसान आंदोलन के प्रति पूर्ण उपेक्षाभाव अपनाए हुए है. देश के अन्नदाता किसान का इतना घोर अपमान कभी किसी सरकार में नहीं हुआ. झूठे दावों और वादों के साथ भाजपा ने किसानों के साथ धोखा ही किया है.
सपा प्रमुख ने कहा कि दिल्ली के चारों तरफ पिछले सात माह से किसान आंदोलित है. खुले आसमान के नीचे वह वर्षा-धूप सहते हुए दिनरात भाजपा सरकार के बहरे कानों तक अपनी आवाज पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन भाजपा उनकी पीड़ा और दुःख दर्द को सुनना ही नहीं चाहती है. उसका रवैया पूर्णतया संवेदनशून्य है. सैकड़ों किसान अपनी जाने गंवा चुके हैं. भाजपा सरकार ने उन्हें मौन श्रद्धांजलि तक नहीं दी.
अखिलेश यादव ने कहा कि किसान कोई बड़ी मांग नहीं कर रहे हैं. उनकी एक मांग है कि उनकी फसल की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य आधारित हो और उसकी अनिवार्यता हो. उनकी दूसरी मांग थी कि जो तीन कृषि कानून जबरन थोपे गए हैं, उन्हें वापस लिया जाए. भाजपा सरकार अपने संरक्षकों-बड़े व्यापारी घरानों के दबाव में किसानों की मांगों को मानने से इंकार कर रही है. किसानों का कहना है कि भाजपा के कृषि कानूनों से खेती पर उनका स्वामित्व खत्म हो जाएगा, वे अपने खेतों में ही मजदूर हो जाएंगे. किसान बर्बादी के कगार पर पहुंच जाएगा.
कैसी विडम्बना है कि भाजपा सरकार अपने किए वादे भी पूरे नहीं करना चाहती है. किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में भाजपा ने एक कदम नहीं उठाया. किसानों को फसल की लागत का ड्योढ़ा मूल्य देने का वादा भी नहीं निभाया. किसानों को धान का 1888 रुपए और गेहूं की 1975 रुपए प्रति कुंतल एम.एस.पी. मिली नहीं क्योंकि सरकारी क्रय केन्द्रों में खरीद ही नहीं हुई. गन्ना किसानों को न बकाया मिला, नहीं प्राकृतिक आपदाग्रस्त किसानों को मुआवजा बंटा.
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भाजपा सरकार लोकतंत्र में जनादेश की उपेक्षा का गंभीर अपराध कर रही है. उसने लोकलाज भी त्याग दिया है. किसानों के हितों के साथ खिलवाड़ के दुष्परिणाम जल्द नज़र आएंगे क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था में कृषि का सर्वाधिक योगदान है. किसान और खेती की बर्बादी से भारतीय अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी. भाजपा किसान आंदोलन की मूकदर्शक बनकर रहेगी तो सन् 2022 में सत्ता की देहरी तक वह नहीं पहुंच पाएगी. किसानों से समाजवादी पार्टी का जुड़ाव है. पंचायती चुनावों के नतीजों से संकेत मिल चुका है कि ऊंट किस करवट बैठेगा?
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