इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुंडा एक्ट के तहत एक व्यक्ति के खिलाफ की गई कार्रवाई को रद्द करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि जिस व्यक्ति पर पिछले 6 सालों में एक भी मुकदमा दर्ज नहीं हुआ, उसके खिलाफ गुंडा एक्ट के तहत कार्रवाई कैसे की जा सकती है. न्यायमूर्ति नलिन कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि अस्पष्ट और अपर्याप्त आरोपों के आधार पर किसी की स्वतंत्रता नहीं छीनी जा सकती.

इस मामले में याचिकाकर्ता वाहिद उर्फ अब्दुल वाहिद पर गाजियाबाद के थाना वेव सिटी में गुंडा एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था. पुलिस अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में उसे ‘खूंखार अपराधी’ बताया और आरोप लगाया कि उसके डर से कोई भी उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने की हिम्मत नहीं कर रहा. हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता पर दर्ज तीन मामलों में गवाह बिना किसी डर के न्यायालय में उपस्थित हुए और साक्ष्य दिए.

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कोर्ट ने कहा कि प्राधिकारियों ने इस मामले में मैकेनिकल तरीके से काम किया और न्यायिक विवेक का उपयोग नहीं किया. याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता पर केवल व्यक्तिगत प्रकृति के मामले दर्ज हैं और पिछले 6 सालों में उसने कोई अपराध नहीं किया. कोर्ट ने इन दलीलों को सुनने के बाद प्राधिकारियों के आदेश को रद्द कर दिया.