बिजनौर. जिले से स्वास्थ्य व्यवस्था की धज्जियां और दिल दहला देने वाली तस्वीर सामने आई है. मेडिकल अस्पताल में बदहाल व्यवस्था के कारण एक मां के नजरों के सामने उसका बेटा मौत के मुंह में समा गया. डायलिसिस के बीच लाइट गोल होने के बाद मां अपने बेटे की जिंदगी बचाने के लिए मेडिकल स्टाफ से जनरेटर चालू करने की मिन्नतें करती रही, लेकिन किसी का दिल नहीं पसीजा. मां के नजरों के सामने बेटे की जान चली गई. इस घटना के बाद स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक के हवा-हवाई दावों की पोल खुलती नजर आ रही है. अब सवाल ये भी उठ रहा है कि आखिर इस मौत का जिम्मेदार कौन लेगा? मंत्री ब्रजेश पाठक बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था के दावे तो करते हैं, लेकिन ये दावे सफेद झूठ साबित हो रहे हैं. अगर स्वास्थ्य व्यवस्था सच में बेहतर होती तो मां के सामने मौत नहीं होती.

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बता दें कि घटना मेडिकल अस्पताल की है. जहां 26 वर्षीय सरफराज अपमी मां के साथ डायलिसिस विभाग में डायलिसिस कराने के लिए पहुंचा था. डायलिसिस शुरू होते ही लाइट गोल हो गई. जिसकी वजह से उसे ब्लड पूरा आधा ही चढ़ पाया था. लाइट गोल होते ही सरफराज की मां अस्पताल स्टाफ के पास दौड़ते हुए पहुंचीं. सरफराज की मां ने स्टाफ के सामने हाथ जोड़कर मिन्नतें करती रही कि जेनरेटर चालू कर दो, नहीं तो मेरा बेटा मर जाएगा. इस दौरान स्टाफ ने डीजल न होने के हवाला दिया.

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उसके बाद सरफराज की मां बेटे की जिंदगी बचाने के लिए निरीक्षण कर रहे सीडीओ पूर्ण बोरा के पास पहुंची. जिसके बाद सीडीओ ने तत्काल डॉक्टरों और स्टाफ को सीपीआर देने के लिए भेजा. लेकिन तब तक सरफराज की मौत हो चुकी थी. जिसके बाद सीडीओ ने इसका जिम्मेदार खराब व्यवस्था को बताया. बेटे की मौत के बाद सलमा ने बिलखते हुए परिजनों को मौत की जानकारी दी.

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बिजली नहीं, सिस्टम मौत का जिम्मेदार

सरफराज मौत से पहले 5 बार डायलिसिस करा चुका था. वह खुद से चलकर अस्पताल पहुंचा था. सरफराज की डायलिसिस शुरू होते ही 2 बार लाइट गई, लेकिन जल्दी आ गई. तीसरी बार आधे घंटे के लिए गोल हुई. इस दौरान उसे खून चढ़ाया जा रहा था, आधा ही खून चढ़ा था और मशीन बंद हो गई. जिसके बाद सरफराज की जान चली गई. इस घटना ने योगी सरकार और उनके मंत्री ब्रजेश पाठक के उन दावों पर सवाल खड़ा कर रही है, जब नेता मंच से विकास के राग अलापते नजर आते हैं. ऐसा लग रहा है कि मानों सरकार और मंत्रियों के लिए लोगों की जिंदगी से ज्यादा चुनावी स्टंट जरूरी है! सवाल तो ये भी खड़े हो रहे हैं कि क्या यही हाल प्रदेश के अन्य सरकारी अस्पतालों का भी तो नहीं?