आलोक वर्मा, लखनऊ. उत्तर प्रदेश में सियासत के विरोधी खेमों को लगता है कि अगर सूबे में भाजपा से सीधे लड़ाई की छवि बन गई तो वोटों की भारी फसल काटी जा सकती है. सपा मुखिया अखिलेश को बढ़त लेता देख बसपा सुप्रीमो मायावती भी मोर्चे पर आ डटी हैं. बुधवार को माया ने अखिलेश को सीधे निशाने पर रखा और सपा पर दलित विरोधी के साथ संकीर्ण राजनीति में माहिर होने का आरोप मढ़ दिया.
देश का सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश इन दिनों पूरी तरह से सियासी रंग में रंग चुका है. भाजपा की हलचल थोड़ी थमी ही थी कि विरोधी खेमों में उठापठक दिखायी पड़ने लगी. मंगलवार को बसपा के बागी विधायकों के सपा मुखिया से मिलने की खबर ने सियासी तापमान आसमान में पहुंचा दिया. कहा गया कि बागी विधायक सपा का हिस्सा बन सकते हैं, लेकिन बात केवल एक धड़े से बात तक ही रही. हालांकि इससे बसपा के खत्म होने के कयास हवा में तैरने लगे.
4. जगजाहिर तौर पर सपा का चाल, चरित्र व चेहरा हमेशा ही दलित-विरोधी रहा है, जिसमें थोड़ा भी सुधार के लिए वह कतई तैयार नहीं। इसी कारण सपा सरकार में बीएसपी सरकार के जनहित के कामों को बन्द किया व खासकर भदोई को नया संत रविदास नगर जिला बनाने को भी बदल डाला, जो अति-निन्दनीय।
— Mayawati (@Mayawati) June 16, 2021
जाहिर है, मायावती भी जानती हैं कि यह सियासी हवा बसपा के लिए घातक हो सकती है. लिहाजा उन्होंने पलटवार में देरी नहीं लगाई. मायावती ने बाकायदा ट्विट कर सपा पर दलित विरोधी, संकीर्ण सियासत करने वाली पार्टी का आरोप मढ़ दिया. मायावती ने कहा कि सोमवार का मामला सिर्फ सोशेबाजी है. अखिलेश इन विधायकों को साथ ले ही नहीं रहे, लिया तो उनकी पार्टी में बगावत हो जायेगी.
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मजेदार बात तो यह कि फिलहाल एक-दूसरे पर निशाना साध रहे अखिलेश-माया अभी हालिया 2019 के लोकसभा चुनाव में साथ-साथ थे. हालांकि इसका सीधा फायदा मायावती को हुआ. लोकसभा में बीएसपी जीरो से 10 सासंद वाली पार्टी बन गई. वहीं समाजवादी पार्टी 5 सीटों पर सिमट गई. लेकिन चुनाव के ठीक बाद मायावती ने समाजवादी पार्टी पर इलजाम लगाते हुए गठबंधन से खुद को अलग कर लिया. जुदा हुए रास्ते अभी भी जुदा ही हैं.
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