लखनऊ. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को हारे हुए लगभग एक महीना पूरा हो गया है और अब पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के दूर रहने से उनकी पार्टी में फूट पड़ने लगी है. पार्टी ने 403 सीटों में से सिर्फ दो और महज 2.3 फीसदी वोटों से जीत हासिल की. पार्टी के करीब 387 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. दस सीटों पर पार्टी उम्मीदवारों को नोटा से कम वोट मिले.

चुनाव को संभालने वाली टीम के खिलाफ नाराजगी दिन पर दिन बढ़ती जा रही है और पार्टी के नेताओं को बाहर निकाला जा रहा है. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता जीशान हैदर जिन्हें हाल ही में निष्कासित किया गया है. उन्होंने कहा, “प्रियंका गांधी वाड्रा पार्टी कार्यकर्ताओं की बात सुनने को भी तैयार नहीं हैं. चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद वह लखनऊ नहीं आई हैं और उनकी मंडली खुशी-खुशी बोलने वाले के खिलाफ कार्रवाई कर रही है. मैं एआईसीसी सदस्य हूं, लेकिन उनकी पार्टी के नेताओं ने मुझे नियमों के खिलाफ जाकर मुझे निकाल दिया है. अगर उन्हें लगता है कि लोगों को निष्कासित करने से वे कांग्रेस सरकार को बचा लेगें, तो वे गलत हैं.”

उन्होंने कहा कि जब से प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव नियुक्त किया गया है. तब से पार्टी के लगभग 9,000 नेता और कार्यकर्ता या तो चले गए हैं या उन्हें बाहर कर दिया गया है. उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है कि गांधी परिवार मुद्दों और समस्याओं को दूर करने के लिए तैयार नहीं हैं. उनके लिए यह मायने नहीं रखता कि पार्टी लगभग खत्म हो चुकी है. कांग्रेस अध्यक्ष न तो हमारे पत्रों का जवाब देती हैं और न ही वह हमसे मिलने के लिए सहमत होती हैं.”

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एक अन्य पूर्व कांग्रेस सांसद, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बात की, उन्होंने कहा, “प्रियंका गांधी वाड्रा को हार के कारणों पर चर्चा करने के लिए उम्मीदवारों और वरिष्ठ नेताओं की बैठक बुलानी चाहिए थी. हम लोकसभा चुनाव से ठीक दो साल दूर हैं और अगर उनका ये रवैया जारी रहा तो कांग्रेस इतिहास की पार्टी बनकर रह जाएगी.”

हैरानी की बात यह है कि प्रियंका का अपना चुनावी अभियान ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ पर आधारित था और उन्होंने चुनाव के बाद की स्थिति में पार्टी की ओर मुड़कर भी नहीं देखा है. उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू को पिछले महीने इस्तीफा देने के लिए कहे जाने के बाद से राज्य यूनिट भी अधर में है. यूपीसीसी कार्यालय के एक कर्मचारी ने कहा, “यहां सभी के लिए अलग स्थिति है. पार्टी का कोई भी नेता पार्टी कार्यालय नहीं जाता है और चुनाव के बाद कोई राजनीतिक गतिविधि नहीं हो रही है.”