एटा. न्याय भी बिकता है! बस कोई उसका सही दाम लगाने वाला होना चाहिए. सुनने में थोड़ा अजीब है, लेकिन यूपी सरकार के ‘निकम्मे’ सिस्टम की यही हकीकत है. रेप पीड़िता मामले की जांडच करने गए अफसर पर 6 समोसे में बिकने का आरोप है. अफसर ने फाइनल रिपोर्ट बदलकर पीड़िता को ही कुसूरवार ठहराते हुए फाइनल रिपोर्ट दाखिल कर दी थी, जिसे कोर्ट ने रद्द कर दिया है. इस मामले ने यूपी पुलिस की कार्यप्रणाली पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं. सवाल ये कि क्या पैसे में पुलिस न्याय बेच रही है? मोटा दाम अदा करने पर ही न्याय मिलेगा?
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बता दें कि मामला जलेसर थाना क्षेत्र का है. 6 साल पहले अप्रैल 2019 में पीड़िता के परिजनों ने शिकायत दर्ज कराई थी कि 14 वर्षीय किशोरी स्कूल से लौट रही थी, उसी दौरान गांव का वीरेश उसे खेत में ले गया और वहां उसके साथ हैवानियत की. किशोरी के शोर मचाने पर 2 लोग मौके पर पहुंच गए थे, जिसके बाद वीरेश गाली-गलौज करते ही मौके से भाग गया. भागने से पहले जान से मारने की धमकी भी दी थी. जिसके बाद पीड़िता के परिजन शिकायत करने थाने पहुंचे थे, लेकिन केस दर्ज करने से मना कर दिया गया था. उसके बाद पीड़िता के पिता ने कोर्ट का रुख किया, तब जाकर केस दर्ज किया गया था.
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वहीं सबसे हैरानी की बात तो तब सामने आई जब, पॉक्सो एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज होने के बाद रेप मामले की जांच करने वाले अफसर ने कोर्ट में एक एफआर दाखिल कर कोई भी सबूत नहीं होने की बात कही. जिसके विरोध में पीड़िता के पिता ने विरोध याचिका लगाकर कोर्ट से कहा कि पीड़िता ने खुद रेप की बात कही थी. साथ ही जांच अफसर ने चश्मदीद गवाहों का बयान भी दर्ज नहीं किया. पीड़िचा के पिता ने कहा, जांच अफसर आरोपी की समोसे की दुकान से 6 समोसे लेकर जांच रिपोर्ट बदल दी और गलत रिपोर्ट बनाकर अपनी एफआईआर में लिखा था कि किशोरी ने वीरेश से उधार में समोसे मांगे थे. न देने पर गुस्से में गंभीर आरोप लगाते हुए केस दर्ज करा दिया था. हालांकि, कोर्ट ने मामले में संज्ञान लिया और पुलिस द्वारा दायर की गई एफआईआर को रद्द कर दिया. अब कोर्ट इस मामले में परिवाद के रूप में सीधे सुनवाई करेगी और आगे की कार्रवाई करेगी.
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