प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग से रेप और हत्या के मामले में मौत की सजा पाए एक शख्स को बरी कर दिया है. उच्च न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष अपने मामले में साबित करने में विफल रहा है. मौत की सजा की पुष्टि के संदर्भ को खारिज करते हुए और मौत की सजा के आदेश के खिलाफ नाजिल की अपील की अनुमति देते हुए, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति समीर जैन की खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले और आदेश को रद्द कर दिया.
इसके अलावा, उच्च न्यायालय ने अपीलकर्ता नाजिल को उन सभी आरोपों से बरी कर दिया जिसके लिए उस पर मुकदमा चलाया गया और उसे दोषी ठहराया गया था. हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता को किसी अन्य मामले में वांछित नहीं होने की स्थिति पर तत्काल जेल से रिहा करने का निर्देश दिया. फैसला सुनाते हुए, अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में, हम पाते हैं कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्य मृतक की अंतिम बार अपीलकर्ता के साथ जीवित देखे जाने और संदेह के दायरे से परे रिकवरी की आपत्तिजनक परिस्थितियों को साबित करने में विफल रही है, साथ ही चिकित्सा-फोरेंसिक साक्ष्य से भी यह प्रदर्शित नहीं होता है कि मृतक के कपड़े या उसके शरीर पर अपीलकर्ता के वीर्य या खून के धब्बे मौजूद थे.
अदालत ने माना कि पीड़िता के शरीर के अंग गायब थे और पुलिस के सामने उसके द्वारा दिए गए इकबालिया बयान के अलावा रेप के लिए आरोपी को दोषी ठहराने के लिए कुछ भी नहीं था. अदालत ने कहा, दुर्भाग्य से, ट्रायल कोर्ट अभियोजन साक्ष्य की विश्वसनीयता का परीक्षण करने में विफल रहा और अभियोजन के साक्ष्य को सत्य के रूप में स्वीकार किया, जो कानून की आवश्यकता नहीं है. अदालत 13 दिसंबर, 2019 को एक ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए गए नाजिल द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी.
उसे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, फास्ट ट्रैक कोर्ट (महिलाओं के खिलाफ अपराध)/विशेष न्यायाधीश, पॉक्सो अधिनियम, रामपुर की अदालत द्वारा धारा 363 (अपहरण), 376एबी (12 वर्ष से कम उम्र की महिला के बलात्कार के लिए सजा) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था।) और भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और पोस्को अधिनियम की धारा 6 के तहत सजा सुनाई गई थी.