लखनऊ. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर टिप्पणी करने पर यूपी पुलिस ने पत्रकार अभिषेक उपाध्याय और ममता त्रिपाठी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. बता दें कि दोनों पत्रकारों ने उत्तर प्रदेश के तमाम महकमों में बड़े पदों पर बैठे अधिकारियों की जातियों के बारे में लिखा था कि कैसे योगी आदित्यनाथ ने सभी पदों पर ठाकुरों को लगाया हुआ है. इसी वजह से दोनों पत्रकारों के के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई. अब पत्रकार अभिषेक उपाध्याय ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

पत्रकार अभिषेक उपाध्याय ने एफआईआर को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा कि उनके लेख “यादव राज बनाम ठाकुर राज (या सिंह राज)” के खिलाफ गंभीर धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई है, जिसमें BNS की धारा 353(2), 197(1)(सी), 302, 356(2) और आईटी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 66 शामिल हैं. याचिकाकर्ता ने उल्लेख किया कि उन्हें कार्यवाहक डीजीपी को लिखे गए अपने पोस्ट के जवाब में उत्तर प्रदेश पुलिस के आधिकारिक एक्स हैंडल से कानूनी कार्रवाई की धमकियां मिल रही हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें लगातार गिरफ्तारी और मुठभेड़ में मारे जाने की धमकियां मिल रही हैं.

पत्रकार को मिल रही धमकियां

अभिषेक उपाध्याय का कहना है कि उनकी स्टोरी, जिसमें जातिगत गतिशीलता के प्रभावों पर चर्चा की गई है को पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान विपक्ष के नेता अखिलेश यादव द्वारा ‘एक्स’ पर शेयर किए जाने के बाद ज्यादा चर्चा का विषय बना. इसके बाद उन्हें ऑनलाइन धमकियों का सामना करना पड़ा. यूपी पुलिस ने ‘एक्स’ पर उन्हें जवाब देते हुए कहा, “आपको सावधान किया जाता है कि अफवाह या गलत सूचना न फैलाएं. ऐसी गैरकानूनी गतिविधियां समाज में भ्रम और अस्थिरता पैदा करती हैं.”

एफआईआर रद्द कराने की मांग

उपाध्याय ने एफआईआर में दर्ज आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि उनके कार्य में कानून के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं है. याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से यह मांग की है कि वह सभी संबंधित एफआईआर को रद्द करे, जिससे उनकी पत्रकारिता की स्वतंत्रता और सुरक्षा सुनिश्चित हो सके.

अभिषेक उपाध्याय ने सोशल मीडिया पर लिखी ये बात

पत्रकार अभिषेक उपाध्याय ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा कि सृष्टि का निर्माता ईश्वर मुझे माफ करें, मैंने एफआईआर जनित “ईश्वर” के विरुद्ध देश की सर्वोच्च अदालत में याचिका कर दी है. मुझे लगता है कि अगर सर्वोच्च न्यायालय ने देश में ईश्वरत्व के उत्पादन और निर्माण की इन चलती फिरती प्रयोगशालों पर रोक नहीं लगाई, तो देश में मुझ जैसे कितने ही पत्रकार ऐसे ही ईश्वरीय अवमानना और कोपभाजन का शिकार होकर कितनी ही एफआईआरों का दंश झेलते रहेंगे. मैने सदैव से ईश्वर की कामना एक ऐसे महादेव के रूप में की है जिनकी उदारता और दयालुता रति के विलाप मात्र से द्रवित हो उठती है और वे कामदेव को पुनर्जीवन देकर अनंग कर देते हैं.

उन्होंने लिखा कि मेरा ईश्वर राम सी पवित्र और निष्पाप भावनाओं का मूर्त रूप है जो केवट के आगे विनत है, मां शबरी के ममत्व में रत है. वो अपनी लीलाओं में निर्धन सुदामा के चावल की सरसता से तृप्त हुआ श्रीकृष्ण है, उदारता के शिखर सा निर्बाध है, अभिन्न है, अविच्छिन्न है. शायद इसीलिए प्रसिद्ध विचारक राममनोहर लोहिया जब लिखते हैं कि “राम, कृष्‍ण और शिव भारत में पूर्णता के तीन महान स्‍वप्‍न हैं”, तो उनके ये वाक्य मेरे भीतर ईश्वरत्व की सबसे महान कल्पना को जन्म देते हैं. लोहिया जी लिखते हैं- “राम की पूर्णता मर्यादित है. कृष्ण की संपूर्ण है और शिव की असीमित लेकिन हर एक पूर्ण है.”

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उपाध्याय ने लिखा कि ऐसे में मैं धरती की एक कोतवाली में गढ़े गए किसी मनुष्य निर्मित और मनुष्य प्रमाणित ईश्वरत्व को कैसे स्वीकार करूं और क्यूं स्वीकार करूं? अज्ञेय “शेखर एक जीवनी” में लिखते हैं कि “विद्रोही हृदय को विद्रोही गढ़न की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार जैसे कलाकार को मृतिका के स्पर्श की!!” सो मैं अपनी यथाशक्ति सत्ता और शक्ति की कोतवाली में गढ़े गए ऐसी किसी भी ईश्वर के विरुद्ध विद्रोह करता हूं. सर्वोच्च न्यायालय के आगे मेरी ये याचिका मेरे इसी विद्रोह की प्रतिध्वनि है, फिर परिणाम चाहे जो भी हो.

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