कानपुर. जिलाधिकारी और सीएमओ के बीच हुए कांड के बाद सीएमओ हरिदत्त को सस्पेंड कर दिया गया था. जबकि, जिलाधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं की गई थी. ऐसे में कानपुर नगर के तत्कालीन सीएमओ हरिदत्त ने जिलाधिकारी पर जातिद्वेष का आरोप लगाते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. जिसमें उनको स्टे मिल गया था और सस्पेंशन की कार्रवाई पर कोर्ट ने रोक लगाते हुए राज्य सरकार औऱ डीएम से 4 हफ्ते में जवाब मांगा था. ऐसे में अब राज्य सरकार बैकफुट पर आ गई है. सरकार ने सीएमओ हरिदत्त का तबादला आदेश निरस्त कर दिया है. स्वास्थ्य विभाग के सचिव की तरफ से तबादला निरस्त किए जाने का निर्देश जारी किया गया है. ऐसे में डॉ. हरिदत्त नेमी ही कानपुर के सीएमओ रहेंगे.
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कैसे शुरू हुआ था विवाद?
फरवरी में डीएम जितेंद्र प्रताप सिंह ने सीएमओ कार्यालय का औचक निरीक्षण किया था. इस दौरान सीएमओ और कई अधिकारी नदारद मिले थे. इतना ही नहीं इसके बाद (सीएचसी) और (पीएचसी) का दौरा कर दस्तावेजों की जांच की. जांच में अनियमितताएं, चिकित्सा सेवाओं में कमी और कर्मचारियों की लापरवाही सामने आई थी. उसके बाद डीएम ने सीएमओ के खिलाफ कार्रवाई करने और तबादले के लिए पत्र लिखा था.
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13 जून को डीएम से उन्नाव की फर्म मैसर्स बृजेश चंद्र के प्रोपराइटर ने शिकायत की थी. कमीशनखोरी के चलते जेएम फार्मा के खिलाफ भी साजिश रचने का आरोप लगाया था. इसके अलावा करोड़ों का भुगतान न करने का भी आरोप लगाया था. मामले की शिकायत मुख्यमंत्री से भी की गई थी. आखिरकार शिकायतकर्ता राजेश शुक्ला ने कोर्ट की शरण ली थी. सप्लाई की गई जांच किट को बिना किसी लैब से जांच कराए घटिया बता दिया गया था, जिसके चलते भुगतान भी रोक दिया गया था. सिंडिकेट की फर्म को ठेका दिलाने के लिए जेएम फार्मा को ब्लैकलिस्टेड करने की साजिश रचने का आरोप है. एक ही जांच कमेटी की दो विरोधाभासी रिपोर्ट सामने आने के बाद सीएमओ द्वारा दबाव डालकर फर्जी रिपोर्ट तैयार कराने का आरोप लगाया था.
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सीएम योगी ने किया था हस्तक्षेप
कानपुर के पूर्व सीएमओ डॉ. हरिदत्त नेमी ने सस्पेंशन के बाद जिला अधिकारी (DM) पर गंभीर आरोप लगाए थे. डॉ. नेमी का दावा था कि डीएम ने पैसे की डिमांड की और कहा, “सिस्टम में आओ”, वरना परेशानी झेलनी पड़ेगी. उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि हर मीटिंग में जातिसूचक शब्दों का प्रयोग कर बेइज्जत किया गया. मामला इतना बढ़ा था कि मुख्यमंत्री योगी को हस्तक्षेप करना पड़ा था. जिसकी चर्चा केवल ब्यूरोक्रेसी तक ही नहीं सियासी गलियारों में भी खूब हुई थी.
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