विक्रम मिश्र, लखनऊ. खुर्शीद रब्बानी का एक शेर है जो उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्रियो पर सटीक बैठता है. ”ये कौन आग लगने को है यहां मामूर, कौन शहर को मक़तल बनाने वाला है.” संगठन बनाम सरकार के बयान के बाद फजीहत झेलने वाले केशव प्रसाद मौर्य अब योगी के मुरीद हो गए हैं.

दरअसल, पिछले तीन दिनों में केशव मौर्य अपने बयानों के ज़रिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत उनकी सरकार की दो बार तारीफ कर चुके हैं. वजह चाहे जो भी हो, लेकिन भाजपा की अंदरूनी लड़ाई सतह पर आने के बाद केंद्र को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा.

उत्तर प्रदेश के बड़े नेताओं में शुमार उपमुख्यमंत्री का बार-बार दिल्ली प्रवास सुर्खियों में रह चुका है. फिर योगी का केंद्रीय संगठन से मुलाकात करना, ये सब भाजपा की अंदरूनी कलह को हवा दे रहा था.

दिल्ली का रास्ता यूपी से ही होकर जाता है

कहते है न कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर जाता है. रुख साफ है, लोकसभा में पिछले दो चुनाव में यूपी द्वारा दी गई सीट की स्थिति और आपसी मनमुटाव के बाद 24 के लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा द्वारा दिये गए सांसदों की संख्या बताने को काफी है कि कलह किस हद तक था.

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भाजपा सरकार और संगठन बनाम सरकार के मुद्दे पर विपक्षी भी चुटकी लेते रहे है. समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव सार्वजनिक तौर पर केशव प्रसाद और योगी को लेकर बयान देते रहे हैं. ऐसे में अपनी साख बचाने और योगी में सहअस्तित्व की भावना से लबरेज केशव प्रसाद मौर्य सरकार के कार्यक्रमो में अपनी सहभागिता दे रहे हैं.

क्या बीजेपी में ऑल इज बेल?

आपको याद ही होगा कि अपने बयानों में केशव मौर्य ने योगी को सीएम की कुर्सी से हटाने तक के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा चुके हैं, जबकि NDA के अन्य सहयोगियों द्वारा भी समय समय पर सरकार को अस्थिर करने वाले बयान आते रहे हैं. हालांकि भाजपा में अब सबकुछ सामान्य होता दिखाई देने लगा है. अब मुख्यमंत्री या सरकार के कार्यक्रम में मय कैबिनेट दोनों उपमुख्यमंत्री उपस्थित रहते हैं.

उपचुनाव के बाद यूपी में बड़ी हलचल की उम्मीद

अभी उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीट्स पर उपचुनाव होने हैं. जिसके लिए सभी को सख्त निर्देश दिए जा चुके हैं, जबकि किसी भी प्रकार के मनमुटाव को छोड़कर चुनाव की तैयारियों में जुटने के लिए कहा गया है. लेकिन भाजपा संगठन से जुड़े एक बड़े पदाधिकारी की मानें तो उत्तर प्रदेश की सरकार की साख उपचुनाव के परिणाम पर ही निर्भर है. इन चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन के अनुसार ही 2027 को लेकर नेतृत्व और संगठन फैसला लेंगे.

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