लखनऊ. उत्तर प्रदेश के वाराणसी, भदोही और मिजार्पुर जिले की अर्थव्यवस्था में कालीन (कार्पेट) उद्योग बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है और करीब डेढ़ हजार से अधिक रजिस्टर्ड कम्पनियां इन तीन जिलों में कालीन बनाने और निर्यात में लगी हुई हैं. इससे अकेले भदोही और वाराणसी क्षेत्र के दो लाख से ज्यादा कारीगरों और उनके लगभग 10 लाख परिवारों की आजीविका जुड़ी हुई है. इन सभी के लिए भदोही में खुला कार्पेट एक्सपो-मार्ट अब उनके कारोबार में इजाफा करने वाला साबित हो रहा है. इस मार्ट के खुलने से अब भदोही और वाराणसी के कालीन कारोबार में इजाफा हुआ है तथा वाराणसी आने वाले विदेशी पर्यटक इस कार्पेट मार्ट में कालीन खरीदने में रूचि दिखा रहे हैं. जिसके चलते यहां के बने कालीनों की विदेशों में मांग बढ़ रही है और यहां का कालीन उद्योग विदेशी कालीन कारोबार को टक्कर दे रहा है.

कोरोना संकट के दौरान भी भदोही के कालीन की बढ़ती मांग को देखते हुए अब आगामी अक्टूबर में कालीन निर्यात संवर्धन परिषद (सीईपीसी) ने राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कार्पेट फेयर (कालीन मेले) का आयोजन करने का निर्णय लिया है. भदोही की पर्शियन कार्पेट पाकिस्तान, ईरान और तुर्की में बनी कार्पेट से अधिक पसंद की जाती है. यहीं वजह है कि कोरोना संकट के दौरान भी कालीन कारोबार मंदी का शिकार नहीं हुआ. कालीन की मांग लगातार बनी रही है. भदोही के कालीन कारोबारी फिरोज वजीरी के अनुसार, करोना संकट के दौरान भी विदेशों से कालीन के आर्डर आते रहे, जिन्हें पूरा किया गया. यही वजह रही कि वर्ष 2020-21 में राज्य से 4,108.37 करोड़ रुपए के कालीन का निर्यात किया गया था. जबकि वर्ष 2019-20 में 3,704.05 करोड़ रुपए का ही कालीन निर्यात कारोबार हुआ था. वही अप्रैल 2021 से अक्टूबर 2021 तक राज्य से 3054.97 करोड़ रुपए का कालीन निर्यात हुआ, जिसमें 95 प्रतिशत योगदान भदोही और उसके आसपास के जिलों का है. फिरोज वजीरी कहते हैं कि यहां का बना कालीन देश में मुंबई, दिल्ली, गुजरात, गोवा, तमिलनाडु राजस्थान समेत देश के कई शहरों और अमेरिका, यूरोप, जर्मनी, जापान सहित कई अन्य देशों में भेजा जा रहा है. सबसे ज्यादा निर्यात अमेरिका में किया जाता है.

भदोही के आसिफ रजा कहते हैं, कोरोना संकट के दौरान जब लोग घरों में थे तो लोगों ने अपने घर के पुराने कालीन को बदलकर नया कालीन लिया. जिसके चलते भदोही में कालीन उद्योग मंदी का शिकार नहीं हुआ. कालीन के निर्यात में लगातार बढ़ोत्तरी होती रही है. इसके साथ ही एक वजह यह भी है कि भदोही के कार्पेट की गुणवत्ता अच्छी है और यहां के कालीन का डिजाइन भी अलग हटकर है. भारतीय कालीन उद्योग का मुकाबला विश्व के अन्य देशों से है, और अपनी खास गुणवत्ता के कारण ही विदेशी बाजारों में भारतीय कालीनों का दबदबा बरकरार है. आसिफ कहते है कि निर्यातकों के बेहतर विपणन कौशल के साथ ही केंद्र एवं प्रदेश सरकार की नीतियों के चलते निर्यात में बढ़ोत्तरी हो रही है. इसके अलावा प्रदेश सरकार द्वारा बनवाए गए कार्पेट मार्ट की वजह से भी कालीन कारोबार में तेजी आयी है. यह कार्पेट मार्ट देश का सबसे बड़ा कार्पेट मार्ट है. अब भदोही में एक ही छत के नीचे लोगों को विश्व की सबसे महंगी पर्शियन कार्पेट से लेकर हस्तनिर्मित रंग-बिरंगी कालीन आसानी से मिल रही है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस कार्पेट मार्ट का लोकार्पण किया था. इसके बनने से वाराणसी आने वाले विदेशी तथा देशी पर्यटक यहां आकर अपनी पसंद का कालीन खरीद रहे हैं. इस कार्पेट मार्ट के खुलने से पर्शियन कार्पेट की बिक्री में इजाफा हुआ है. पर्शियन कार्पेट पूरी दुनिया में सबसे महंगी बिकती है. इसकी कीमत 50 डॉलर से 500 डॉलर स्क्वायर फीट तक है. विदेश में बिकने वाली कुल कार्पेट में पर्शियन कार्पेट का हिस्सा करीब दस प्रतिशत है. पर्शियन कार्पेट को 250 साल पहले ईरान से आए लोगों ने भदोही में बनाना शुरू किया था. पर्शियन कालीन के एक स्क्वेयर इंच में करीब 182 बारीक गांठें आती हैं. जितनी बारीक गांठ होती है, उतनी ही ज्यादा कीमत होती है. इन कालीनों में प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल होता है. यह रंग पेड़-पौधों के पत्ते, उनकी छाले, चाय पत्ती से बनाए जाते हैं. इस कार्पेट का अमेरिका, जर्मनी, आस्ट्रेलिया, कनाडा और ब्रिटेन आदि देशों में खूब निर्यात हो रहा है.