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लखनऊ. ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लेकर सियासी गलियारों में खूब चर्चा हो रही है. जिसको लेकर केंद्र सरकार ने संसद में बिल भी पेश किया. जिसको लेकर वोटिंग कराई गई. जिसके पक्ष में 269 और उसके खिलाफ 198 वोट पड़े. वहीं इस मुद्दे को लेकर सपा सुप्रीमो ने देश की जनता के नाम सोशल मीडिया (X) पर पोस्ट कर खुला संदेश लिखा है और उनसे अपील की है.
अखिलेश यादव ने पोस्ट करते हुए लिखा, प्रिय देश-प्रदेशवासियों, पत्रकारों, सच्चे लोकतंत्र के सभी सच्चे पक्षधरों से अपील. ‘एक देश-एक चुनाव’ के संदर्भ में जन-जागरण के लिए आपसे कुछ ज़रूरी बातें साझा कर रहा हूं. इन सब बिंदुओं को ध्यान से पढ़िएगा, क्योंकि इनका बहुत गहरा संबंध हमारे देश, प्रदेश, समाज, परिवार और हर एक व्यक्ति के वर्तमान और भविष्य से है. लोकतांत्रिक संदर्भों में ‘एक’ शब्द ही अलोकतांत्रिक है. लोकतंत्र बहुलता का पक्षधर होता है. ‘एक’ की भावना में दूसरे के लिए स्थान नहीं होता, जिससे सामाजिक सहनशीलता का हनन होता है. व्यक्तिगत स्तर पर ‘एक’ का भाव, अहंकार को जन्म देता है और सत्ता को तानाशाही बना देता है.
उन्होंने आगे कहा, ‘एक देश-एक चुनाव’ का फ़ैसला सच्चे लोकतंत्र के लिए घातक साबित होगा. ये देश के संघीय ढांचे पर भी एक बड़ी चोट करेगा. इससे क्षेत्रीय मुद्दों का महत्व ख़त्म हो जाएगा और जनता उन बड़े दिखावटी मुद्दों के मायाजाल मे फंसकर रह जाएगी, जिन तक उनकी पहुंच ही नहीं है. हमारे देश में जब राज्य बनाए गये तो ये माना गया कि एक तरह की भौगोलिक, भाषाई व उप सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के क्षेत्रों को ‘राज्य’ की एक इकाई के रूप में चिन्हित किया जाए. इसके पीछे की सोच ये थी कि ऐसे क्षेत्रों की समस्याएं और अपेक्षाएं एक सी होती हैं, इसीलिए इन्हें एक मानकर नीचे-से-ऊपर की ओर ग्राम, विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा के स्तर तक जन प्रतिनिधि बनाएं जाएं. इसके मूल में स्थानीय से लेकर क्षेत्रीय सरोकार सबसे ऊपर थे. ‘एक देश-एक चुनाव’ का विचार इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को ही पलटने का षड्यंत्र है. एक तरह से ये संविधान को ख़त्म करने का एक और षड्यंत्र भी है.
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आगे अखिलेश यादव ने कहा, इससे राज्यों का महत्व भी घटेगा और राज्यसभा का भी. कल को ये भाजपावाले राज्यसभा को भी भंग करने की मांग करेंगे और अपनी तानाशाही लाने के लिए नया नारा देंगे. ‘एक देश-एक सभा’, जबकि सच्चाई ये है कि हमारे यहाँ राज्य को मूल मानते हुए ही ‘राज्यसभा’ की निरंतरता का सांविधानिक प्रावधान है. लोकसभा तो 5 वर्ष तक की समयावधि के लिए होती है. ऐसा होने से लोकतंत्र की जगह एकतंत्रीय व्यवस्था जन्म लेगी, जिससे देश तानाशाही की ओर जाएगा. दिखावटी चुनाव केवल सत्ता पाने का ज़रिया बनकर रह जाएगा.
अगर भाजपाइयों को लगता है कि ‘ONE NATION, ONE ELECTION’ अच्छी बात है तो फिर देर किस बात की, केंद्र व सभी राज्यों की सरकारें भंग करके तुरंत चुनाव कराइए. दरअसल ये भी ‘नारी शक्ति वंदन’ की तरह एक जुमला ही है. ये जुमला भाजपा की दो विरोधाभासी बातों से बना है. जिसमें कथनी-करनी का भेद है. भाजपावाले एक तरफ़ ‘एक देश’ की बात तो करते हैं, पर देश की एकता को खंडित कर रहे हैं, बिना एकता के ‘एक देश’ कहना व्यर्थ है; दूसरी तरफ़ ये जब ‘एक चुनाव’ की बात करते हैं तो उसमें भी विरोधाभास है. दरअसल ये ‘एक को चुनने’ की बात करते हैं, जो लोकतांत्रिक परंपरा के खिलाफ़ है.
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आगे अखिलेश यादव ने कहा, क्या ‘एक देश, एक चुनाव’ का मुद्दा महंगाई, बेरोजगारी, बेकारी, बीमारी से बड़ा मुद्दा है जो भाजपाई इसे उठा रहे हैं. दरअसल भाजपा इन बड़े मुद्दों से ध्यान भटका रही है. जनता सब समझ रही है. सच तो ये है कि BJP को सोते-जागते सिर्फ़ चुनाव दिखाई देता है और ये सोचते हैं कि किस तिकड़म से परिणाम इनके पक्ष में दिखाई दे. ये हर बार जुगाड़ से चुनाव जीतते हैं, इसीलिए चाहते हैं कि एक साथ जुगाड़ करें और सत्ता में बने रहें.
अगर ‘वन नेशन, वन नेशन’ सिद्धांत के रूप में है तो कृपया स्पष्ट किया जाए कि प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक के सभी ग्राम, टाउन, नगर निकायों के चुनाव भी साथ ही होंगे या फिर त्योहारों और मौसम के बहाने सरकार की हार-जीत की व्यवस्था बनाने के लिए अपनी सुविधानुसार? भाजपा जब बीच में किसी राज्य की चयनित सरकार गिरवाएगी तो क्या पूरे देश के चुनाव फिर से होंगे? किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने पर क्या जनता की चुनी सरकार को वापस आने के लिए अगले आम चुनावों तक का इंतज़ार करना पड़ेगा या फिर पूरे देश में फिर से चुनाव होगा?
‘एक देश-एक चुनाव’ को लागू करने के लिए जो सांविधानिक संशोधन करने होंगे उनकी कोई समय सीमा निर्धारित की गयी है या ये भी महिला आरक्षण की तरह भविष्य के ठंडे बस्ते में डालने के लिए उछाला गया एक जुमला भर है? कहीं ‘एक देश-एक चुनाव’ की ये योजना चुनावों का निजीकरण करके परिणाम बदलने की साज़िश तो नहीं है? ऐसी आशंका इसलिए जन्म ले रही है, क्योंकि कल को सरकार ये कहेगी कि इतने बड़े स्तर पर चुनाव कराने के लिए उसके पास मानवीय व अन्य ज़रूरी संसाधन ही नहीं हैं, इसीलिए हम चुनाव कराने का काम भी (अपने लोगों को) ठेके पर दे रहे हैं.
अखिलेश यादव ने भी कहा कि जनता का सुझाव है कि भाजपा सबसे पहले अपनी पार्टी के अंदर ज़िले-नगर, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के चुनावों को एक साथ करके दिखाए फिर पूरे देश की बात करे. आशा है देश-प्रदेश की जागरुक जनता, पत्रकार बंधु और लोकतंत्र के पक्षधर सभी दलों के कार्यकर्ता, पदाधिकारी व नेतागण ये बातें स्थानीय स्तर पर अपनी-अपनी भाषा-बोली में हर गाँव, गली, मोहल्लों में जाकर आम जनता को बताएंगे और उन्हें समझाएंगे कि ‘एक देश, एक चुनाव’ किस तरह पहले तानाशाही को जन्म देगा और फिर उनके हक़ और अधिकार को मारेगा, आरक्षण को ख़त्म करेगा और फिर एक दिन संविधान को भी और आख़िर में चुनाव को भी. चेत जाइए, भविष्य बचाइए!
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