लखनऊ. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुख्य चुनाव आयुक्त, भारत निर्वाचन आयोग, निर्वाचन सदन के नाम ज्ञापन में उत्तर प्रदेश में जारी एसआईआर प्रक्रिया में स्थानीय अधिकारियों द्वारा चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों से इतर दिये जा रहे मौखिक आदेशों की ओर ध्यान आकर्षित किया है. इस प्रक्रिया को निष्पक्ष एवं पारदर्शी बनाने के लिए सभी संबंधित अधिकारियों को निर्देशित करने तथा पूरी प्रक्रिया पर निगरानी रखने के लिये प्रत्येक जिले में अन्य राज्यों के ईमानदार अधिकारियों को पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त किये जाने की उन्होंने मांग की है.
ज्ञापन में कहा गया है कि स्थानीय अधिकारियों द्वारा बीएलओ को निर्देशित किया जा रहा है कि विदेश में नौकरी और व्यापार के उद्देश्य से रह रहे नागरिकों के नाम मतदाता सूची से हटाए जाएं. भले ही उनके गणना प्रपत्र उनके अथवा उनके किसी व्यस्क परिवारजनों द्वारा भरे गये हों. ऐसे एक मामले में जनपद रामपुर में एक वृद्ध महिला, जिसके दो पुत्र नौकरी के उद्देश्य से विदेश में रह रहे हैं, पर गलत सूचना देने के आरोप में प्राथमिकी भी दर्ज की है. उच्च जनपदीय अधिकारियों से जानकारी करने पर बताया जा रहा है कि ऐसे नागरिक जो विदेश में रहते हैं, को फार्म 6ए भरना है. जोकि चुनाव आयोग द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों से भिन्न है. चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुसार विदेश में रह रहा भारतीय नागरिक यदि 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर लेता है तो 6ए फार्म भरकर वोट बनवा सकेगा.
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आगे कहा, कुछ स्थानों पर अधिकारियों द्वारा कहा जा रहा है कि पूरी मतदाता सूची को शून्य मानकर नए सिरे से बनाई जा रही है. लिहाजा विदेश में रह रहे नागरिकों को फार्म 6ए के माध्यम से ही उन्हें मतदाता सूची में शामिल होना होगा. यदि मतदाता सूची को शून्य मानकर नये सिरे से बनाया जा रहा है तो ऐसी स्थिति में भारत में रह रहे नागरिकों को भी फार्म 6 के माध्यम से मतदाता बनना चाहिए न कि गणना प्रपत्र के माध्यम से, क्योंकि फार्म 6ए फार्म 6 का विस्तार है जो विदेश में 18 वर्ष की आयु पूर्ण करने पर नये मतदाताओं के लिये है.
आगे अखिलेश यादव ने कहा, अतः हमारा पक्ष है, कि वे सभी मतदाता जो पहले से मतदाता सूची में दर्ज हैं और जिन्होंने भारत की नागरिकता का त्याग नहीं किया है, सामान्य प्रक्रिया से ही मतदाता बनने चाहिये. सर्वविदित है कि भारत के अनेक नागरिक जिनकी संख्या 1.5-करोड़ से भी अधिक है, विदेशों में नौकरी व व्यवसाय करते हैं. इतनी बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाने का कोई औचित्य नजर नहीं आता है.
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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री जनपदों के भ्रमण पर एसआईआर प्रक्रिया में लगे अधिकारियों को अपने राजनैतिक लाभ के लिये निर्देशित कर रहे हैं, जबकि एसआईआर की प्रक्रिया में मुख्यमंत्री और अन्य किसी भी मंत्री की कोई भूमिका अपेक्षित नहीं है. स्थानीय स्तर के अधिकारी बीएलओ को मतदाताओं की श्रेणी बदलने के लिये मौखिक रूम से निर्देशित कर रहे हैं, ताकि सरकार के समर्थक मतदाताओं के नाम निर्बाध रूप मतदाता सूची में जुड़ सकें तथा विपक्षी दलों के समर्थकों को प्रक्रिया की जटिलताओं में उलझाकर उनकी संख्या कम की जा सके. कुछ नामों में 2003 एवं 2025 की मतदाता सूचियों में मामूली अन्तर पाया गया है. जैसे- एक मतदाता सूची में नाम बिना सरनेम के है और दूसरी मतदाता सूची में सरनेम सहित या नाम का ’सिंह’ या ’कुमार’ ’अहमद’ व खान का अन्तर है तो ऐसे नामों में से कुछ को चिन्हित कर कैटगरी ’सी’ में जुड़वाने के लिये दबाव डाला जा रहा है और कुछ में अन्तर को नजर अन्दाज कर के कैटेगरी ’ए’ में शामिल करने के मौखिक निर्देश दिये जा रहे है.
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