विक्रम मिश्र, लखनऊ. समाजवादी पार्टी के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की पुण्यतिथि गुरुवार को मनाई जाएगी. उनके सियासत के धोबी पछाड़ दांव सभी लोगों को आज भी याद है. पिछले साल नेता जी की पुण्यतिथि पर उनके भाई शिवपाल यादव ने अपने बड़े भाई को कुछ अलग अंदाज में याद करते हुए श्रद्धां​जलि दी थी, उन्होंने सोशल प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किया, ठहरी ठहरी सी जिंदगी है, सबकी आंखों में नमी है…एक धोखा है ये सब रंग और सवेरा, बिन सूरज ये उजाला है तो अंधेरा क्या है?

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मुलायम सिंह यादव के सियासी सफर पर नजर डालें तो देश की राजनीति में उनका बहुत बड़ा कद था. समाजवादी पार्टी से विभिन्न दलों का भले ही सियासी विरोध रहा हो, लेकिन मुलायम सिंह यादव के संबंध दलों की सीमा में बंधे नहीं थे. वह खुलकर विरोध और प्यार करते थे. पहलवानी के शौकीन मुलायम सिंह यादव सियासी दांव-पेंच में भी बेहद माहिर थे और उन्होंने इसकी बदौलत बड़ा मुकाम हासिल किया.

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मुलायम सिंह यादव 1967 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर जसवंतनगर विधानसभा सीट से महज 28 साल की उम्र में विधायक बने थे. वहीं जब 1977 में उत्तर प्रदेश में रामनरेश यादव के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी तो मुलायम सिंह को सहकारिता मंत्री बनाया गया. तब उनकी उम्र महज 38 साल थी, लेकिन सामान्य कदकाठी और कम उम्र के मुलायम सिंह यादव तो सियासत के उभरते हुए सितारे थे. उन्होंने इसके आगे की रणनीति पर शुरू से ही काम करना शुरू कर दिया था.
उसके बाद मुलायम सिंह यादव ने संभल और कन्नौज से भी लोकसभा के चुनाव में जीत दर्ज की.

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1989 में मुलायम सिंह यादव पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. उस वक्त केंद्र में चंद्रशेखर की सरकार हुआ करती थी. ठंड दस्तक दे रही थी, लेकिन उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 120 किलोमीटर दूर राम नगरी अयोध्या का माहौल उबल रहा था. विश्व हिंदू परिषद, बीजेपी, बजरंग दल जैसे संगठनों ने अयोध्या में मंदिर स्थल(तत्कालीन विवादित स्थल) पर 30 अक्टूबर को कारसेवा का ऐलान किया था.

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30 अक्टूबर 1990 की सुबह लाखों की संख्या में कार सेवक तत्कालीन विवादित ढांचे की तरफ बढ़ने लगे. पुलिस के लिए भीड़ को संभालना मुश्किल हो गया और जब लाठीचार्ज से बात नहीं बनी तो शूटिंग के आदेश दे दिया गया, जिसमें 5 कारसेवक की मृत्यु गोली लगने से हो गई. अयोध्या में हुई हिंसा को लेकर भी मुलायम सिंह यादव की सरकार पर खून के छीटें पड़े और उन्हें मौलाना मुलायम सिंह यादव की उपाधि भी दी जाने लगी थी. हालांकि, इसके बाद भी मुलायम सिंह यादव के चाहने वालों में कोई कमी नहीं आई.

अयोध्या के बाद भी अजेय रहे मुलायम
प्रचंड मोदी लहर 2014 और 2019 में मुलायम सिंह यादव ने भाजपा की रणनीतियों को धता बताकर जीत हासिल किया. सियासी सफर की बात करें तो 2003 में एक बार फिर मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. मुलायम सिंह यादव 2007 तक यूपी के मुख्यमंत्री रहते हुए 2004 में उन्होंने लोकसभा चुनाव भी जीता और बाद में इस्तीफा दे दिया.

2009 में उन्होंने मैनपुरी से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीते भी. प्रचंड मोदी लहर में 2014 में मुलायम सिंह यादव ने आजमगढ़ और मैनपुरी दो जगह से लोकसभा चुनाव लड़ा और दोनों पर जीत दर्ज किया और बाद में उन्होंने मैनपुरी सीट छोड़ दी.
2019 में उन्होंने एक बार फिर मैनपुरी से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. अप्रैल 2023 में केंद्र की मोदी सरकार ने मुलायम सिंह यादव को मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों उनके पुत्र और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने यह सम्मान ग्रहण किया.

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