वाराणसी. बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी से कौन परिचित नहीं है. भगवान शंकर के त्रिशूल पर त्रिकंटक विराजित ये नगरी करोड़ों भक्तों की आस्था का केंद्र है. लेकिन बहुत लोग ये नहीं जानते कि यहां ज्योतिर्लिंग के साथ-साथ शक्तिपीठ भी है. यानी यहां पर शिव-शक्ति दोनों ही विराजित हैं. बाबा विश्वनाथ मंदिर के निकट ही मां विशालाक्षी का मंदिर है. जो कि माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है. मान्यताओं के अनुसार, मां विशालाक्षी बाबा विश्वनाथ की अर्धांगिनी के रूप में विराजित है. बाबा विश्वनाथ यहीं पर प्रतिदिन रात्रि शयन करते है. काशी की टेढ़ी मेढ़ी गलियों के बीच देवी का ये शक्ति पीठ है, जहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है.

गृहिणी स्वरूप की पूजा

मान्यता के अनुसार यहां पर देवी के गृहिणी स्वरूप की भी पूजा की जाती है. स्कंद पुराण के अनुसार एक बार ऋषि वेद व्यास वाराणसी में भूख से व्याकुल होकर घूम रहे थे, लेकिन उन्हें किसी ने भोजन नहीं दिया. अंत में मां विशालाक्षी एक गृहिणी के रूप में प्रकट हुईं. फिर उन्होंने वेद व्यास को भोजन कराया. मां विशालाक्षी की ये भूमिका देवी अन्नपूर्णा के समान है.

कैसे बना शक्तिपीठ?

जब देवी सती ने खुद को नष्ट किया था, तब विरह में भगवान शंकर ने पार्थिव देह को लेकर तांडव नृत्य किया था. उनके इस मोह को तोड़ने के लिए देवताओं ने भगवान विष्णु से आग्रह किया. जब भगवान विष्णु ने देवी सती के देह को अपने सुदर्शन चक्र से नष्ट किया था. इसके बाद जिस भी जगह पर देवी के अंग गिरे उस जगह को शक्तिपीठ कहा गया. मान्यता के अनुसार यहां पर देवी के दाहिने कान का कुंडल गिरा था. अन्य श्रुतियों के अनुसार यहां पर देवी की आंख गिरना भी बताया जाता है.

जगद्गुरु आद्य शंकराचार्य ने की थी देवी की प्रतिष्ठा

मां विशालाक्षी मंदिर में जो मुर्तिया हैं, पुजारियों के मुताबिक वर्तमान में जिस प्रतिमा के दर्शन होते हैं, उसके ठीक पीछे मां आदि शक्ति की प्रतिमा है. उनके आगे श्रीयंत्र था. पीछे जो माता की प्रतिमा है, उनका तेज बहुत अधिक होने के कारण उन्हें सामने से कोई देख नहीं पाता था. तब आदि शंकराचार्य ने श्रीयंत्र के उपर देवी की दूसरी प्रतिमा स्थापित की.

श्री यंत्र की भी स्थापना

विशालाक्षी मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के ऊपर एक गोपुरम है. मंदिर में शिव लिंगम, नाग (दिव्य नाग) और श्री गणेश जी का विग्रह भी स्थापित है. गर्भगृह के पीछे आदि शंकराचार्य की एक संगमरमर की मूर्ति भी है. जब आदि शंकराचार्य मंदिर में आए, तब उन्होंने यहां एक श्रीयंत्रम भी स्थापित किया जिसकी पूजा की जाती है. इस श्रीयंत्रम की कुमकुम अर्चना बहुत शुभ मानी जाती है.

नवग्रहों के दर्शन

गर्भगृह की दाईं ओर एक और मंदिर है, जिसमें अश्वारूढ़ देवी विशालाक्षी की उत्सव प्रतिमा है. साथ ही मंदिर में भगवान शिव भी विराजमान हैं. इसके अलावा मंदिर में एक वेदी पर वैदिक ज्योतिष से ग्रह देवताओं को मानव रूप में दर्शाते हुए नौ मूर्तियां हैं. जो क्रमश: सूर्य (सूर्य), चंद्र (चंद्रमा), मंगला (मंगल), बुध (बुध), बृहस्पति (बृहस्पति), शुक्र (शुक्र), शनि (शनि), राहु (आरोही/उत्तर चंद्र नोड) और केतु (अवरोही/दक्षिण चंद्र नोड) हैं.

कैसा है मंदिर

मंदिर का जीर्णोद्धार सन् 1908 में मद्रासियों ने कराया था. गर्भगृह को छोड़कर मंदिर का अन्य भाग दक्षिण भारतीय शैली का बना हुआ है. मंदिर के बाहरी भाग पर गणेश जी, शंकर जी समेत कई अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं. यहां की शक्ति विशालाक्षी माता और काल भैरव हैं. मंदिर की छत पर फूलों की आकृति बनाई गई है. साथ ही राशियों की छवि भी उकेरी गई है. मुख्य मंदिर के ऊपर भगवान शिव और देवी मीनाक्षी के विवाह का चित्रण है.

कैसी है देवी की प्रतिमा?

गर्भगृह में संगमरमर का एक और छोटा सा मंदिर है, जिसमें देवी का अर्चाविग्रह प्रतिष्ठित है. उनके ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ में कमल है, जबकि दूसरा हाथ अभय मुद्रा में है.

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