विक्रम मिश्रा, लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी अपने परंपरागत वोट बैंक और खोए हुए जनाधार को फिर से जागृत करने के जुगत में है। ऐसे में आरक्षण में क्रीमी लेयर पर अदालत के फैसले ने बसपा को मुद्दा दे दिया। अक्सर आंदोलनों या प्रदर्शनों से दूरी बनाकर रहने वाली बसपा अब सड़कों पर है। कार्यकर्ताओं के द्वारा अलग अलग जिलों में प्रदर्शन की सूचना भी मिल रही है।
गुरुवार को मायावती ने अपने बयान में समाजवादी पार्टी के पीडीए के मुद्दे को आड़े हाथों लेते हुए आरक्षण में सपा और कांग्रेस की उदासीनता पर सवालिया निशान खड़ा किया था। आज के उनके बयान में उनका निशाना पीएम मोदी पर है। उन्होंने आरक्षण पर दिए गए कोर्ट के फैसले पर केंद्र सरकार द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाने का आरोप लगाया है। जबकि पुरानी आरक्षण व्यवस्था को ही लागू करने की अपील किया है। उन्होंने केंद्र सरकार पर आरक्षण जैसे ज़रूरी विषय पर कमजोर पैरवी करने का आरोप लगाया।
आरक्षण के मुद्दे पर मायावती का रुख साफ है। आरक्षण में वर्गीकरण के मसले पर वो आर-पार के मूड में तो है ही साथ ही अपनी साख बचाने और पुराने परम्परागत वोट बैंक को फिर से अपने पाले में लाने की कोशिश में है। आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में जाति आधारित समीकरण हर दलों को साधने ही होते है। जैसे समाजवादी पार्टी को लोकसभा चुनाव में पीडीए का फायदा मिला। कांग्रेस को संविधान बचाओ यात्रा से लोकसभा में उनकी संख्या बढ़ी। इसके अलावा अलग-अलग जातियों के नेता जैसे ओपी राजभर की सुभासपा और निषाद पार्टी इत्यादि भी मायावती के परम्परागत वोट बैंक में सेंधमारी कर ही रहे है।
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