विक्रम मिश्र, लखनऊ। भाजपा संगठन के चुनाव में कभी इतनी प्रतिस्पर्धा और इतने चुनावी पर्यवेक्षक नहीं देखे गए है। इसके पीछे की वजह देखे तो साफ है कि बड़ी पार्टी और देश भर में ज़्यादातर हिस्सो में सत्तानशीन होने के कारण कार्यकर्ता और पदाधिकारियों की संख्या बहुत ज़्यादा है। सदस्य और कार्यकर्ताओं की संख्या के लिहाज से बीजेपी इस समय सबसे बड़ी पार्टी है। कई साल से सत्ता में भी है। ऐसे में पार्टी में पद पाने के लिए सबसे ज्यादा प्रतिस्पर्धा भी यहीं है।

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उम्मीद से ज्यादा नामांकन

पार्टी चाहती है कि संगठन चुनाव में किसी तरह का कोई विवाद न हो। यही वजह है कि पहले से पर्याप्त संख्या में चुनाव अधिकारी और पर्यवेक्षक तैनात किए गए हैं। चुनाव के संबंध में गाइडलाइनें जारी की गई हैं और कार्यशालाएं भी आयोजित की गई हैं। फिर भी उम्मीद से ज्यादा नामांकन होने से जिला स्तरीय पदाधिकारी काफी असमंजस में हैं। पार्टी के बड़े नेताओं की हर गतिविधि पर नजर है। जिला स्तरीय कार्यकर्ता नहीं चाहते कि उन पर कोई आरोप लगे। यही वजह है कि वे इतने दावेदारों में से तीन नाम नहीं चुन पा रहे। पूरी जिम्मेदारी प्रदेश के वरिष्ठों पर छोड़ दी है।

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युवा कार्यकर्ताओं पर फोकस

बता दें कि भाजपा संगठन चुनाव की प्रक्रिया अक्टूबर में शुरू हो गई थी। सबसे पहले 1.62.204 बूथों पर अध्यक्ष का चुनाव हुआ। उसके कद भाजपा संगठन की दृष्टि से 95 जिलों के 1,918 मंडलों में अध्यक्ष 15 दिसंबर तक चुनाव पूरा करने की तारीख तय की गई थी। नामांकन के लिए दिशा निर्देश दिए गए थे कि 35-45 साल के ऐसे युवा नामांकन कर सकते हैं, जो दो बार के सक्रिय सदस्य हों और उनकी छवि साफ-सुथरी हो। यह भी कहा गया था कि जिला स्तर से ही तीन-तीन नामों का पैनल तैयार करके प्रदेश को भेजा जाए।

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अधिकारियों की बढ़ी टेंशन

सभी मंडलों में नामांकन हो चुका है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि सताधारी पार्टी होने के कारण कार्यकर्ताओं में पदाधिकारी बनने के लिए काफी उत्सुकता है। ऐसे में काफी संख्या में दावेदारों ने नामांकन किया है। कई मंडल तो ऐसे है जहां 15-20 नामांकन हुए हैं। ऐसे में जिले के पदाधिकारियों को नाम चयन में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।