बहराइच. नेपाल को सीधे धान निर्यात की परमिट से देश के 26 जिलों की 250 चावल इकाइयां ठप हो गयीं हैं. देश की नेपाल से सटे इन सीमावर्ती जिलों में स्थित कस्टम कार्यालय से महानिदेशक विदेश व्यापार विभाग की ओर से जारी परमिट के आधार पर धान की लगातार सप्लाई की जा रही है. धान के इस तरीके के सीधे निर्यात से जहां चावल कुटरी उद्योग बुरी तरह चरमरा गया है. वहीं देश के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी का भी नतीजा सरकार को भुगतना होगा. इन जिलों के चावल निर्यातक इकाइयों के सामने रोजगार संकट मुंह बाये खड़ा है. इन 250 इकाइयों से रोजगार पाने वाले हजारों श्रमिक अपने जिलों से रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं. अधिकारियों की खामियों का नतीजा सरकार को और सीधे सीधे देश की जनता को उठाना होगा. इस गैर पारम्परिक निर्यात से जनता की थाली से कम दामों में मिलने वाले विशेष चावलों की खुशबू गायब हो जाएगी और सामान्य चावल भी महंगे दामों में खरीदने को मजबूर होना पड़ेगा.

भारत-नेपाल के बीच लंबे समय से वैसे तो रोटी-बेटी का संबंध है. सीमावर्ती इलाकों में बड़ी संख्या में रिश्तेदारी होने के कारण लोग एक दूसरे के सुख-दुख में साझीदार होते हैं. परंपरा के तहत उपहारों का आदान प्रदान भी खूब होता है. आमतौर पर भारतीय क्षेत्र से लोग अपने नेपाली रिश्तेदारों को चावल-गेहूं एवं अन्य खाद्य पदार्थ भी उपहार स्वरूप भेजते रहते हैं. सांस्कृतिक आदान-प्रदान की तेजी से नेपाल के सीमावर्ती बाजारों में भारतीय तराई क्षेत्र के विशेष चावल सांभा मंसूरी, काला नमक, बसमती की मांग बढ़ी. जिसने व्यापारियों को नई ताकत दी है. जिससे हिमालय की तलहटी में आबाद भारतीय जिलों में बहराइच, सिद्धार्थनगर, महराजगंज, गोरखपुर, पीलीभीत अग्रणी चावल निर्यातक जिलों में शुमार हो गये. इसके अलावा बस्ती, कुशीनगर, देवरिया, गोण्डा, लखिमपुर, श्रावस्ती, बलरामपुर तथा बिहार के पश्चिमी चंपारण, बगहा, मोतिहारी आदि 26 जिलों से चावल का निर्यात बम्पर मात्रा में नेपाल में किया जाने लगा. जिससे चावल कुटीर उद्योग फलने फूलने लगा.

चावल की सैकड़ों इकाइयों में हजारों श्रमिकों को रोजगार मुहैय्या हुआ. लेकिन अब नेपाल को सीधे धान निर्यात होने से इन जिलों की लगभग 250 इकाइयां ठप पड़ गयीं हैं. अन्य इकाइयों के सामने भी ठप होने का संकट खड़ा है. इस सबंध में चावल निर्माता समिति के अध्यक्ष विनोद कुमार अग्रवाल का कहना है कि नेपाल में धान के बीज को प्रतिबंधों के साथ निर्यात करने की अनुमति थी. लेकिन कतिपय कारणों से अवैधानिकता को वैधानिक स्वरूप प्रदान कर परमिट के माध्यम से धान निर्यात का मार्ग सुगम कर दिया गया है. विदेश व्यापार विभाग ने अमान्य अवधारणा को आधारित कर उत्पादन इकाइयों के उत्पादन को ध्यान में नहीं रखा और धान निर्यात की अनुमति दे दी गई. अब 26 जिलों में ढाई सौ इकाइयों में रोजगार संकट है. इसको लेकर चावल निर्माता समिति के अध्यक्ष विनोद कुमार अग्रवाल ने केंद्र सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिख कर नेपाल को धान का निर्यात रोकने की आवाज उठाई है.

सार्क समझौते के तहत सिर्फ चावल का हो सकता निर्यात

लघु उद्योग भारती के संयोजक व निर्यात प्रोत्साहन ब्यूरो के सदस्य और निर्यात विशेषज्ञ रामरतन अग्रवाल का कहना है कि सभी देशों की सिर्फ एक ही मान्यता है यदि कच्चा माल की प्रचुरता है तभी इस वस्तु का निर्यात होना संभव है जबकि इस धान से चावल निर्माण कर विभिन्न देशों को निर्यात किया जाता है. जिससे विदेशी मुद्रा अर्जित होती है. जिसमें नेपाल भी शामिल है. जबकि धान अपने आकार एवं अधिक मूल्य के कारण एमएसपी की परिधि में नहीं आता है और ना ही एफसीआई मानक में है. जबकि सार्क देशों के मध्य समझौता अंतर्गत भारत से नेपाल को भारी मात्रा में चावल के स्वरूप में निर्यात किया जाता है. इसीलिए राष्ट्र के उद्योग हित में धान निर्यात को तत्काल प्रभाव से प्रतिबंधित किया जाने की आवश्यकता है.