इलाहाबाद. हाईकोर्ट ने भिखारियों के उत्थान और पुनर्वास को लेकर दाखिल याचिका पर सामाजिक कल्याण विभाग, सामाजिक वेलफेयर विभाग उप्र, जिला परिषद उप्र के अध्यक्ष, राज्य और केंद्र सरकार सहित अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. यह आदेश मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने युवा सामाजिक सेवा संस्थान के अध्यक्ष आलोक शुक्ला की जनहित याचिका पर दिया है.

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जनहित याचिका में उत्तर प्रदेश भिक्षावृति प्रतिषेध अधिनियम 1975 के कुछ प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने और भिखारियों के पुनर्वास के लिए राज्य और भारत सरकार की ओर से शुरू की गई योजनाओं को लागू करने की मांग की गई है. साथ ही भिखारियों के पुनर्वास के लिए हर साल जारी होने वाले फंड की जांच कराई जाए.

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इसके साथ ही गरीब, अशिक्षित बच्चों, महिलाओं और भीख मांगने में लगे विकलांग व्यक्तियों के संरक्षण और पुनर्वास के लिए एक उच्च स्तरीय आयोग स्थापित करने की मांग की गई है. वहीं अधिवक्ता रविनाथ तिवारी ने बताया कि पुनर्वास, स्वरोजगार के माध्यम से भिक्षावृत्ति में फंसे लोगों को बाहर निकालने के लिए प्रयास किया जा रहा है.

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