लखनऊ में रविवार को हिजबुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह की मौत के विरोध में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए. छोटे इमामबाड़ा से लेकर बड़े इमामबाड़ा तक हजारों लोगों ने सड़क पर प्रदर्शन किया. साथ ही एक किलोमीटर लंबी कैंडल मार्च भी निकाला गया. इजरायल की ओर से 27 सितंबर को नसरल्लाह को मारने के बाद से लेबनान में हिजबुल्लाह के ठिकानों पर हवाई हमले जारी हैं. नसरल्लाह 1992 में 30 साल की उम्र में हिजबुल्लाह का चीफ बना था. जिसने संगठन को मध्य पूर्व में एक महत्वपूर्ण शक्ति बना दिया और इजरायल के खिलाफ एक मजबूत प्रतिरोध का प्रतीक बना. नसरल्लाह की मौत के बाद भी न केवल लेबनान में बल्कि क्षेत्र में भी तनाव और संघर्ष की स्थिति है. ये घटनाक्रम न केवल स्थानीय, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी विश्व का ध्यान अपनी ओर खींच रही है.
बता दें कि नसरल्लाह की मौत के बाद से लेबनान और ईरान समेत कई देशों में शोक की लहर है. शिया इस्लाम (shia Islam) से ताल्लुख रखने वाले मुस्लिम नसरल्लाह की मौत से बाद से गमगीन है. वहीं सुन्नी बहुल (Sunni Islam) सीरिया समेत कई मुस्लिम देशों में हसन नसरल्लाह की मौत पर जश्न का माहौल है. हिजबुल्ला चीफ की मौत की खबर जैसे ही सामने आई, लोग सड़कों पर निकलकर जमकर जश्न मनाया. साथ ही पटाखे फोड़े.
सीरियाई गृह युद्ध में की बशर अल-असद की मदद
साल 2011 तक अरब स्प्रिंग का प्रभाव सीरिया में दिखने लगा. सीरिया एक सुन्नी मुस्लिम बाहुल्य देश है, जहां शिया मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं. वहां मार्च 2011 में इसी आधार पर गृह युद्ध शुरू हुआ. दरअसल, बशर अल-असद 2000 में सीरिया के राष्ट्रपति बने, जो खुद शिया मुस्लिम हैं. करीब एक दशक बाद सीरिया के सुन्नियों ने शिया पक्षपात का आरोप लगाते हुए बशर सरकार का विरोध शुरू किया. हसन नसरल्लाह ने बशर अल-असद के शासन को तख्तापलट से बचाने में मदद करने के लिए हिज्बुल्लाह के हजारों लड़ाकों को सीरिया भेजा. एक अनुमान के मुताबिक लगभग 50 हजार हिज्बुल्लाह लड़ाके सीरिया में तैनात किए थे.
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