
रविंद्र कुमार भारद्वाज,रायबरेली l उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बार फिर हलचल मचाने को तैयार स्वामी प्रसाद मौर्या ( Swami Prasad Maurya ) ने अपनी नई राजनीतिक पारी शुरू कर दी है। उनकी नवगठित पार्टी “अपनी जनता पार्टी” के तत्वावधान में शुरू की गई “संविधान सम्मान व जनहित हुंकार रथ यात्रा” ने सूबे के राजनीतिक गलियारों में चर्चा का बाजार गर्म कर दिया है। यह यात्रा न केवल मौर्या के सियासी भविष्य की दिशा तय करेगी, बल्कि उत्तर प्रदेश की जनता पर इसका व्यापक असर भी देखने को मिल सकता है।
मौर्या, जो कभी बहुजन समाज पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी जैसे बड़े दलों का हिस्सा रहे, अब अपनी नई पार्टी के जरिए दलित, पिछड़े और शोषित वर्गों की आवाज बनने की कोशिश में जुटे हैं। सवाल यह है कि क्या यह यात्रा उनकी सियासी महत्वाकांक्षाओं को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी, या यह एक और असफल प्रयोग साबित होगा?
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स्वामी प्रसाद मौर्या ( Swami Prasad Maurya ) ने अपनी जनता पार्टी के बैनर तले इस रथ यात्रा की शुरुआत संविधान के सम्मान और जनहित के मुद्दों को उठाने के लिए की है। उनका दावा है कि यह यात्रा सूबे के हर कोने तक पहुंचेगी और शोषित समाज को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करेगी। मौर्या ने इस मौके पर कहा, “हमारा मकसद संविधान की रक्षा करना और दलित, पिछड़े, आदिवासी और अल्पसंख्यक समाज को उनका हक दिलाना है। यह यात्रा जनता की हुंकार है, जो सत्ता के गलियारों तक पहुंचेगी।”
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सियासी सफर: उतार-चढ़ाव की कहानी
स्वामी प्रसाद मौर्या ( Swami Prasad Maurya ) का राजनीतिक करियर चार दशकों से भी ज्यादा का रहा है। 1980 के दशक में लोकदल से शुरू हुई उनकी सियासी पारी ने उन्हें जनता दल, बीएसपी, बीजेपी और सपा जैसे दलों के साथ जोड़ा। बीएसपी में वह मायावती के सबसे भरोसेमंद नेताओं में से एक थे और कई बार विधायक व मंत्री रहे। हालांकि, 2016 में टिकट बेचने के आरोप लगाकर उन्होंने बीएसपी छोड़ दी और बीजेपी का दामन थामा। 2017 में योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने, लेकिन 2022 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी से इस्तीफा देकर सपा में शामिल हो गए। सपा में भी उनकी राह आसान नहीं रही। हिंदू धर्म और ब्राह्मणवाद पर विवादित बयानों के चलते पार्टी के भीतर और बाहर आलोचना झेलने के बाद, फरवरी 2024 में उन्होंने सपा से नाता तोड़ लिया और “राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी” में शामिल हो गए l
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अपनी जनता पार्टी : कितनी मजबूत जमीन?
मौर्या की नई पार्टी का फोकस गैर-यादव ओबीसी, खासकर मौर्या, कुशवाहा, शाक्य और सैनी समाज पर है, जो उत्तर प्रदेश में करीब 6-7% वोट बैंक का प्रतिनिधित्व करता है। इसके अलावा, वह दलित और अल्पसंख्यक वोटों को भी अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मौर्या का यह प्रयोग 2027 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर किया जा रहा है, “मौर्या का अपना एक जनाधार है, खासकर कुशवाहा समाज में। लेकिन उनकी पार्टी की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वह कितने प्रभावी ढंग से संगठन खड़ा कर पाते हैं और बड़े दलों के सामने अपनी पहचान बना पाते हैं।”हालांकि, चुनौतियां भी कम नहीं हैं। मौर्या का बार-बार दल बदलना उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है।
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जनता पर असर : वोट बैंक में सेंध की संभावना
मौर्या की यह यात्रा और उनकी पार्टी का उभार उत्तर प्रदेश की सियासत में कई बदलाव ला सकता है। सबसे बड़ा असर सपा और बीएसपी के वोट बैंक पर पड़ सकता है, क्योंकि दोनों पार्टियां ओबीसी और दलित वोटों पर निर्भर हैं। कुशीनगर, गोरखपुर, और सहारनपुर जैसे जिलों में मौर्या समाज की अच्छी मौजूदगी है, और अगर Swami Prasad Maurya इन वोटों को एकजुट कर पाए, तो यह सपा के लिए खतरे की घंटी हो सकती है। बीजेपी भी इसे हल्के में नहीं ले रही है, क्योंकि मौर्या का ओबीसी कार्ड उनके लिए भी चुनौती बन सकता है। मौर्या की यात्रा का असर 2027 के चुनावों में साफ दिखेगा। अगर वह छोटे स्तर पर भी सफल रहे, तो गठबंधन की सियासत में उनकी अहमियत बढ़ सकती है।” वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि मौर्या का यह प्रयास व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से ज्यादा कुछ नहीं, और बिना मजबूत संगठन के यह ज्यादा दूर तक नहीं जाएगा।
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उत्तर प्रदेश की सियासत में नया अध्याय
स्वामी प्रसाद मौर्या( Swami Prasad Maurya ) की यह रथ यात्रा और उनकी पार्टी का सफर अभी शुरुआती दौर में है। उनकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वह कितने प्रभावी ढंग से जनता के बीच अपनी बात पहुंचा पाते हैं और अपने समुदाय को एकजुट कर पाते हैं। फिलहाल, यह कहना मुश्किल है कि उनकी यात्रा कहां तक जाएगी, लेकिन इतना तय है कि उत्तर प्रदेश की सियासत में एक नया अध्याय शुरू हो चुका है। जनता की नजर अब इस बात पर टिकी है कि क्या मौर्या अपने वादों को हकीकत में बदल पाएंगे, या यह एक और सियासी नौटंकी बनकर रह जाएगी।
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