कानपुर. कहते हैं कि जनप्रतिनिधि जनता की आवाज होते हैं. लेकिन यूपी में इन जनप्रतिनिधियों की आवाज सुनने वाला ही कोई नहीं. प्रदेश में माननीयों की आवाज को ही अनसुना किया जा रहा है. रविवार को बर्रा थाना क्षेत्र में भाजपा कार्यकर्ता को पीटने के मामले में राज्यमंत्री प्रतिभा शुक्ला ने थानेदार को फोन किया. एक बार नहीं छह-छह बार कॉल किया. लेकिन थानेदार साहब का फोन नहीं उठा. पता नहीं कहां बिजी थे. तब मंत्री जी को लगा थानेदार साहब के पास उनका फोन उठाने का समय नहीं है तो वो उनसे मिलने के लिए सीधे थाने पहुंच गईं.

मंत्री जी के थाने पहुंचने की सूचना अफसरों को मिली तो गिरते-पड़ते वो भी आ गए. पुलिस अफसरों ने भाजपा कार्यकर्ता को पीटने वाले बदमाश की गिरफ्तारी का भरोसा दिलाया. थानेदार को चेतावनी दी और किसी तरह मामला शांत कराया. अफसरों और थानेदारों का मंत्रियों और विधायकों के साथ ये रवैया नया नहीं है. इससे पहले भी विधायक और मंत्री फोन न उठने की शिकायत करते रहे हैं. सदन में भी कई बार ये मुद्दा गूंजा. विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने अफसरों को ताकीद भी दी.

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मुख्य सचिव और डीजीपी समय-समय पर अफसरों को मंत्री और विधायकों का फोन उठाने के निर्देश जारी करते रहते हैं. लेकिन रवैया हर बार की तरह वही रहता है. ढाक के तीन पात. खैर, अब देखना होगा कि को जो खुद को जनता की आवाज बताते हैं उनकी खुद की आवाज पुलिस और अफसर कब सुनेंगे?