विक्रम मिश्र, लखनऊ. यूपी की सड़कें हत्यारों से भी बेरहम होती जा रही है. हत्या की तुलना में यहां 6-7 गुना मौतें सड़क हादसों में हो रही हैं. कोई दिन ऐसा नहीं है जिसमें वाहनों की आमने-सामने की भिड़ंत ना हो. कहीं डिवाइडर तो कहीं राजमार्गों पर बने कट लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं. बीते 24 घंटों में अलग-अलग जिलों में दो दर्जन से ज्यादा लोगों की सड़क हादसों में मौतें हुई है. जबकि कई घायल हुए हैं.

गौर करें तो जिस तरह से सड़क हादसों में मौतों के आंकड़ों में इजाफा हो रहा है, इससे साफ है कि कहीं न कहीं संबंधित विभाग की बेइमान साबित हो रहा है. शहरी क्षेत्र से लेकर ग्रामीण इलाकों में की जा रही इंजीनियरिंग लोगों की जान की दुश्मन बन रही है. भव्य और सुंदर दिखने के लिए बनाए गए चौराहे या फिर जगह-जगह कट हादसे का सबब बन रहे हैं.

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आलम यह है कि आए दिन लोगों को को जाम से भी जूझना पड़ता है, वहीं सिलसिलेवार दुर्घटनाएं भी बढ़ रही है.
सड़क दुर्घटना की रोकथाम के लिए वैसे तो हर साल यातायात सुरक्षा का आयोजन किया जाता है, लेकिन यह अभियान चंद कदमों पर चलने के बाद फिर थम जाती है, नतीजतन आए दिन लोगों के खून से यूपी की सड़कें लाल हो रही है. सड़क सुरक्षा की कवायद विभाग की फाइलों में गोते लगा रही है. इससे ये समझ आता है कि सरकार तो अपनी ओर से पूरा प्रयास करती है, लेकिन विभाग उस प्रयास को फाइलों में अटका देता है.

अब ऐसे में एक मुद्दा ये भी होता है कि सरकार चाहे जितना भी अच्छा काम कर ले, लेकिन विभाग और उसमें बैठे कुछ जिम्मेदार सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं और कामों पर पलीता लगाने में तुले रहते हैं. विभागीय नाकामियों और कुछ जिम्मेदारों की लापरवाही से शासन की छवि धूमिल होती है. जबकि सरकार लगातार रोड इन्फ्रास्ट्रकचर को मजबूत करने में लगी हुई है. लगातार कई एक्सप्रेसवे बनाए जा रहे हैं, सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है. लेकिन कहीं ना कहीं कुछ जिम्मेदारों के गैर-जिम्मेदाराना कार्यों से सब धरा का धरा रह जाता है.