मार्कण्डेय पाण्डेय, लखनऊ : लोकसभा चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं। यूपी के 10 विधायक चुनाव जीतकर अब सांसद बन चुके हैं। इनके सांसद बन जाने से यूपी की दस सीटों पर चुनाव होने हैं जिसे लेकर सपाई और भाजपाई खेमों में मंथन का दौर जारी है। हालांकि योगी के दूसरे कार्यकाल में लगभग आधा वक्त निकल चुका है और जो भी विधायक चुने जाएंगे वह महज विधान सभा के आधे कार्यकाल में ही अपना योगदान दे पाएंगे। लेकिन असल चुनौती पीडीए गठबंधन और एनडीए की साख का है।

योगी के लिए अग्रि परीक्षा की घड़ी
लोकसभा चुनावों में मोदी ही नहीं योगी का जादू भी फेल हो गया। 400 पार तो दूर बहुमत का आंकड़ा भाजपा नहीं छू पाई। इसके लिए उत्तर प्रदेश को जिम्मेदार माना जा रहा है जहां अनुमान से कम सीटें भाजपा को मिली हैं। अब दस सीटों पर उपचुनाव होने है जिसे लेकर एक तरफ सपाई खूब जोर-शोर से लगे हैं तो दूसरी तरफ भाजपा खेमे में भी सियासत के पहलवानों ने वर्जिश शुरू कर दिया है। माना जा रहा है कि योगी सरकार ने संगठन और सरकार के पेंच कसने शुरू कर दिए हैं। योगी को मालूम है कि लगातार हार के बाद उनकी अपराजेय की छवि का राज खुल जाएगा।

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एनडीए और पीडीए की चिंता
एनडीए को अपनी पांच सीटों की चिंता है तो सपाई जीत से उत्साहित हैं। वह अपने पांच विधायकों को सांसद बना चुके हैं और इन पांचों पर अपने विधायक फिर से जीताने के लिए लग गए हैं। इतना ही नहीं, अतिउत्साह में सपा को लगता है कि वह इस चुनाव में भाजपा की सीटें भी छीन लेगी। पहले भी सपा के नेता शिवपाल यादव कह चुके हैं कि वोट प्रतिशत के हिसाब से देखें तो लोकसभा में जितना मत हमें मिला है, उतने पर समाजवादी पार्टी की स्पष्ट बहुमत की सरकार बन जाएगी।
इन सीटों पर होना है चुनाव
यूपी में दस विधानसभा सीटों पर चुनाव होना है। जिसमें पांच पर समाजवादी पार्टी का कब्जा था। अयोध्या के मिल्कीपुर, करहल, सीसामऊ, कुंदरकी, गाजियाबाद, फूलपुर, मझंवा, कठेरी, खैर और मीरपुर सीट पर चुनाव होना है। इन सीटों में से कुछ सीटें सपा के लिए परंपरागत मानी जाती है तो कुछ सीटें ऐसी भी है जहां पिछले कई चुनावों से भाजपा जीतती आई है।

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कैसा रहेगा समीकरण
अयोध्या में मिल्कीपुर सीट हालांकि सपा का गढ़ रही है। वहां पर कद्दावर नेता अवधेश प्रसाद विधायक रहे हैं जो अब सांसद बन चुके हैं। वह अनुसूचित जाति से आते हैं। इसी सीट पर पिछड़े और दलित वोटों का समीकरण भाजपा का गणित फिर से खराब कर सकता है। लेकिन अयोध्या को लेकर जिसप्रकार चर्चा पूरे देश में चली है, उससे वोटरों का मूड बदल भी सकता है। इसी तरह गाजियाबाद सीट 2022 के चुनाव में अतुल गर्ग ने बड़े अंतर से जीता था। दूसरे नंबर पर सपा के विशाल शर्मा रहे थे। यहां पर पिछले जीत का अंतर देखते हुए और भाजपा का शहरी वोटरों पर पकड़ देखते हुए इसे आसान सीट माना जा रहा है।
पीडीए का फार्मूला हो सकता है खराब
करहल विधान सभा से अखिलेश यादव विधायक रहे हैं। यह मैनपुरी जिले का विधानसभा है। मैनपुरी सीट सपा के लिए काफी आसान मानी जाती रही है। लेकिन इस बार मामला उल्टा पड़ सकता है। कारण कि आजाद समाज पार्टी चंद्रशेखर रावण ने भी अपना प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर दिया है। इसके बाद सपा का पीडीए फार्मूला फेल साबित हो सकता है।
मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या
सीसामऊ विधानसभा में मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है। यहां पर 1.11 लाख मुस्लिम मतदाता हैं। कानपुर के इस विधानसभा सीट पर अन्य जातियों के भी मतदाता हैं लेकिन मुस्लिम मत ही निर्णायक साबित होते हैं। हालांकि मुस्लिम मतदाताओं के बाद दूसरे नंबर पर ब्राम्हण मतदाता हैं। यदि ब्राम्हण और अन्य जातियों का ध्रुवीकरण करने में भाजपा कामयाब होती है तो यह सीट आसानी से भाजपा जीत सकती है। इसी प्रकार कुंंदरकी विधानसभा यूपी के मुरादाबाद के अंर्तगत आती है। यहां पर 2022 के चुनाव में सपा ने जीत हासिल किया था। यहां भी मुस्लिम मतदाताओं की तादात निर्णायक हैं। जो कि भाजपा के लिए कठिन साबित हो सकते हैं।
पटेल होंगे फूलपुर में निर्णायक
फूलपुर विधानसभा में पटेल वोट निर्णायक होते हैं। यदि यहां पर पटेल वोटों के साथ दूसरी जातियों के वोट जुड़ जाते हैं तो भाजपा के लिए लड़ाई आसान होगी नहीं तो यहां भी मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी तादात है। लगभग दो बार के लोकसभा को छोड़ दे तो यहां से भाजपा कभी लोकसभा नहीं जीती है। लगभग वही हाल विधानसभा का भी है। मझवा सीट मिर्जापुर में हैं यहां पर बिंद, मांझी, ब्राम्हण वोट निर्णायक होते हैं।

यहां से सांसद अपना दल की अनुप्रिया पटेल हैं तो अनुमान किया जा रहा है कि यह सीट भाजपा की झोली में जा सकती है। अंबेदकरनगर के कटेहरी विधान सभा के बारे में कुछ भी कह पाना आसान नहीं है। मुसलमानों की अच्छी खासी तादात है लेकिन यहां के मतदाता मनमौजी भी है। 2022 में यहां से सपा के लालजी वर्मा चुनाव जीते थे। इसी प्रकार अलीगढ़ की खैर विधानसभा में अनूप प्रधान विधायक थे। अब वह भाजपा के सांसद बन गए हैं। यह सुरक्षित सीट है और इस क्षेत्र में 1.10 लाख जाट वोटर, 50 हजार ब्राम्हण और 40 हजार मुस्लिम मतदाता हैं। इसे भाजपा के लिए आसान सीट माना जाता रहा है।
रालोद को फिर मिल सकती है मीरपुर विधानसभा
पश्चिम यूपी की यह सीट जात बाहुल्य है। 2022 के चुनाव में आरएलडी के चंदन चौहान ने जीत दर्ज किया था। हालांकि तब भाजपा के साथ आरएलडी का गठबंधन नहीं था। इस बार गठबंधन होने के कारण यहां पर सपा की मेहनत पर पानी फिर सकता है। यहां तय माना जा रहा है कि भाजपा आरएलडी गठबंधन का प्रत्याशी ही जीतेगा।