हेमंत शर्मा, भोपाल/इंदौर। मध्यप्रदेश में दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों पर संकट गहराता नजर आ रहा है। नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने एक नया आदेश जारी करते हुए प्रदेश के सभी नगर निगमों और नगर पालिकाओं से यह जानकारी मांगी है कि वर्ष 2000 के बाद किन कर्मचारियों को दैनिक वेतन पर नियुक्त किया गया। विभाग ने यह रिपोर्ट 25 अक्टूबर 2025 तक अनिवार्य रूप से भेजने को कहा है।
मामला सिर्फ प्रशासनिक नहीं, बल्कि अब राजनीतिक रंग भी ले चुका है, क्योंकि यह आदेश दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में 28 मार्च 2000 को जारी किए गए एक पुराने परिपत्र के हवाले से निकाला गया है। जिसमें स्पष्ट रूप से लिखा था कि “राज्य शासन, निगमों, मंडलों, विकास प्राधिकरणों और नगर निकायों में दैनिक वेतन पर किसी भी प्रकार की नियुक्ति नहीं की जाएगी।”
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कांग्रेस शासन का आदेश बना विवाद की जड़
28 मार्च 2000 को तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की सरकार ने वित्त विभाग के माध्यम से एक आदेश जारी किया था, जिसमें यह निर्देश दिए गए थे कि किसी भी विभाग या निकाय में दैनिक वेतनभोगी नियुक्तियां नहीं होंगी। यदि कोई अधिकारी ऐसे कर्मचारियों की नियुक्ति करता है, तो उनके वेतन की वसूली संबंधित अधिकारी से की जाएगी। आदेश का उल्लंघन करने पर विभागीय और दंडात्मक कार्रवाई भी की जाएगी। उस समय यह आदेश कांग्रेस सरकार की “राजकोषीय अनुशासन नीति” का हिस्सा बताया गया था। लेकिन अब, 25 साल बाद वर्तमान सरकार के नगरीय विकास विभाग ने उसी आदेश की स्थिति की जानकारी मांगी है।
राजनीतिक गलियारों में मचा हड़कंप
जैसे ही यह आदेश मंत्रालय से निकला, राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई। दैनिक वेतन भोगियों का कहना है कि विभागीय अधिकारी सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए यह आदेश जारी कर रहे हैं। “यह आदेश पूरी तरह राजनीतिक मंशा से जारी किया गया है। 25 साल पुराने आदेश को दोबारा सक्रिय कर दिया गया है ताकि कर्मचारियों में भ्रम फैले और सरकार के खिलाफ माहौल बने।” वहीं भाजपा समर्थक और सरकारी सूत्रों का कहना है कि यह कदम “प्रशासनिक पारदर्शिता और वित्तीय अनुशासन” के लिए जरूरी है। उनका तर्क है कि कई नगरीय निकायों ने बिना अनुमति के वर्षों से दैनिक वेतनभोगी रखे हुए हैं, जिससे शासन पर वित्तीय बोझ बढ़ रहा है।
दैनिक वेतनभोगियों में डर का माहौल
राज्यभर के 80 हज़ार से ज्यादा दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी इस आदेश से असमंजस में हैं। कई निकायों में 10 से 15 साल से काम कर रहे कर्मचारियों का कहना है कि “हमने पूरे समय सेवा दी, अब हमें अस्थिरता में क्यों डाला जा रहा है ?” कर्मचारी संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि इस आदेश के आधार पर किसी की सेवा समाप्त की गई तो वे आंदोलन करेंगे।
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नगरीय विकास विभाग ने मांगी रिपोर्ट
नगरीय विकास विभाग ने सभी नगर निगमों, नगर पालिकाओं और नगर परिषदों को पत्र जारी कर निर्देशित किया है कि 28 मार्च 2000 के बाद नियुक्त सभी दैनिक वेतनभोगियों की विस्तृत जानकारी भेजी जाए। साथ ही यह भी बताया जाए कि किन मामलों में अब भी ऐसे कर्मचारी कार्यरत हैं। वहीं कांग्रेस इस पूरे घटनाक्रम को “राजनीतिक साजिश” बता रही है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, यह कदम उन कर्मचारियों को असंतुष्ट करने वाला है
ब्यूरोक्रेसी के भीतर भी खिंचतान
मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक, इस आदेश के बाद विभागीय स्तर पर भी मतभेद उभर आए हैं। दैनिक वेतनभोगी मानते हैं कि इस तरह के आदेश सरकार की छवि को नुकसान पहुंचा सकते हैं, खासकर जब सरकार “स्थायी रोजगार नीति” और “युवा अवसर अभियान” जैसी योजनाओं को आगे बढ़ा रही है। राज्य में जारी यह आदेश अब केवल प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं रह गया है, बल्कि एक राजनीतिक तूफान का रूप ले चुका है। जहां एक ओर भाजपा सरकार इसे नियमों की पुनःपुष्टि बता रही है, वहीं कांग्रेस और कर्मचारी संगठन इसे “दैनिक वेतनभोगियों पर हमला” और “सरकार की छवि खराब करने की कोशिश” मान रहे हैं। अब नजर इस बात पर है कि क्या सरकार इस आदेश को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ेगी या विवाद बढ़ने पर पीछे हटेगी।
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