आजकल काम के बढ़ते दबाव और जीवन की भागमभाग में हर तीसरा आदमी स्ट्रेस और एंग्जाइटी जैसे मानसिक रोगों का शिकार हो रहा है. यही नहीं अव्यवस्थित जीवनशैली और खराब खानपान भी कई तरह के मानसिक रोगों को जन्म देता है. क्या आपने कभी तिब्बतियन सिंगिंग के बारे में सुना है? शायद बहुत कम लोग ही ऐसे होंगे जो तिब्बतियन सिंगिंग के बारे में जानते होंगे.
यह प्राचीन काल में प्रयोग होने वाली एक ऐसी पद्धति है जिसकी मदद से लोग स्ट्रेट जैसी मानसिक बीमारी का इलाज करते थे. इसके कुछ खास बर्तनों को बजाकर और गुनगुनाकर दिमागी रोगों का इलाज किया जाता है. आज हम जानेंगे आखिर तिब्बतियन सिंगिंग क्या है और यह किस तरह से काम करती है.
तिब्बतियन सिंगिंग का प्रयोग बौद्ध महंतों द्वारा ध्यान का अभ्यास करने और स्ट्रेस जैसे मानसिक रोगों से छुटकारा पाने के लिए किया जाता था.
इसमें कुछ खास तरह के कटोरों को बजाकार दिमाग को शांति और सुकून दिया जाता है। इसमें जो कटोरे इस्तेमाल होते हैं उनकी आवाज घंटियों जैसी होती है. ये कटोरियां इतनी गहरी धुन निकालती हैं कि दिमाग को काफी सुकून मिलता है. इन कटोरे को हिमालयी कटोरे भी कहा जाता है. तिब्बतियन सिंगिंग के कटोरे स्ट्रेस तो दूर करने के साथ ही बॉडी को हील करने और रिलेक्स पहुंचाने की भी शक्ति रखते हैं.
डॉक्टर्स और एक्स्पर्ट दावा करते हैं कि इन सिंगिंग बॉउल से निकलने वाली वाइब्रेशन तनाव को कम करके शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डालती है. यह कोशिकाओं में सामंजस्य स्थापित करने और शरीर की ऊर्जा प्रणाली को संतुलित करने का भी काम करती है. एक्सपर्ट तो यहां तक कहते हैं कि ये सिंगिंग बाउल दिमागी की सेल्स को चार्ज करने के साथ ही हमारे इम्यून सिस्टम को मजबूत करते हैं. यदि कोई व्यक्ति हफ्ते में 2 बार भी इस उपचार को ले लेता है तो वह कई रोगों से बच सकता है. अध्ययन बताते हैं कि जिन लोगों को सिंगिंग थैरेपी और प्लेसबो दिया गया उन्हें बॉडी पेन और स्ट्रेस की शिकायत काफी कम रहती है.
तिब्बतियन सिंगिंग में कुछ खास तरह के बॉउल होते हैं. उपचार के दौरान इन्हें जब बजाया जाता है तो यह काफी तेज और सुखदायी आवाज निकालते हैं. इन बॉउल को सर्कुलर मोशन में बजाया जाता है. जो व्यक्ति इसे सुन रहा होता है उसे या तो किसी आरामदायक कुर्सी पर बैठाया जाता है या फिर लेटने को कहा जाता है. करीब आधे घंटे तक चलने वाले इस सेशन में ऐसा माहौल बनता है कि मरीज को एक बार में ही फायदा हो जाता है. मरीज को इसे सुनते वक्त अपनी भुजाओं को पूरा घुमाने के लिए कहा जाता है. यदि मरीज चाहे तो बैली को भी पूरा घुमा सकता है.
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