रायपुर। इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय में लोक और शास्त्र का सुंदर समन्वय है। अपनी लोक चेतना के साथ शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने का यह यशस्वी उपक्रम छत्तीसगढ़ को ललित कला के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खड़ा करता है। यह संबोधन कुलाधिपति एवं राज्यपाल अनसुइया उईके ने आज इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के पंद्रहवें दीक्षांत समारोह के अवसर पर व्यक्त किये।
राज्यपाल ने कहा कि मेरा सौभाग्य है कि संगीत के क्षेत्र में जिन्होंने भारत का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया है। वे हमारे बीच इस अवसर पर मौजूद हैं। मैंने देखा कि जो सहजता और सरलता मैंने आपके भीतर देखी, वही आपकी शक्ति है। उनकी इस सहजता से विद्यार्थियों को सीखना चाहिए। इसी भावना ने उन्हें इतना बड़ा मुकाम दिया है।
उइके ने कहा कि छात्र जीवन में मैंने जो सीखा, उसके बुनियाद पर मैं आपके बीच खड़ी हूँ। जैसा कि मैं जाकिर हुसैन जी को सुन रही थी, उन्होंने बताया कि 3 साल की आयु से वे संगीत सीख रहे हैं और अब भी सीखने की ललक उनमें मौजूद है। हमें उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। राज्यपाल ने कहा कि यह हमारे लिए गौरव की बात है कि इस छोटे से शहर में लघु भारत दिखता है। हम स्वर्गीय राजा वीरेंद्र बहादुर जी एवं रानी पद्मावती देवी जी के प्रति आभारी हैं, जिन्होंने ललित कला के प्रति समर्पित यह संस्थान हमें सौगात के रूप में दिया।
मुख्य अतिथि सीसीआरटी नई दिल्ली के निदेशक ऋषि वशिष्ठ ने कहा कि कलाएं हमें ताकत देती हैं कि हम अपने शर्तों पर जीवन जी सकें। हममें दृढ़ता और विश्वास पैदा करती हैं। कला हमारे जीवन के अंधकार को दूर करती हैं और जीवन के असल मूल्य सिखाती है।
इस अवसर पर कुलाधिपति अनुसुइया उइके ने पद्मश्री एवं पद्मभूषण से सम्मानित सुप्रसिद्ध तबला वादक जाकिर हुसैन को मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया। इस मौके पर हुसैन ने कहा कि इस सम्मान से मैं अभिभूत हूँ। मेरे पिता ने मुझे सिखाया कि हमेशा अपने भीतर शिष्य की प्रवृत्ति रखना, सीखने की ललक रखना और मैं हमेशा उनकी यह बात सूक्त वाक्य के रूप में रखता हूँ। हुसैन ने कहा कि दुनिया में आने पर कोई भी व्यक्ति पहली सांस से लेकर आखरी सांस तक हर क्षण सीखना है। इस मौके पर प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं को स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। साथ ही शोध छात्र-छात्राओं को भी डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई।
इस मौके पर कुलपति मांडवी सिंह ने कहा कि 1953 में महाराज वीरेंद्र बहादुर एवं रानी पद्मावती देवी ने इस संस्थान का पौधा बोया था। आज उनकी दूरदर्शिता से यह संस्थान संगीत एवं ललित कला को सहेजने संवर्धित करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यहाँ 20 से अधिक राज्यों के 2000 से अधिक छात्र-छात्रा पढ़ रहे हैं। इनमें विदेशी छात्र भी शामिल हैं। इस अवसर पर राज्यपाल के सचिव सोनमणि बोरा, संभागायुक्त दिलीप वासनीकर तथा विद्यार्थीगण और उनके परिजन उपस्थित थे।