Utpanna Ekadashi: मार्गशीर्ष मास के कष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहते हैं. यह एकादशी चातुर्मास के बाद पड़ने वाली पहली एकादशी है, जब भगवान विष्णु सृष्टि का कार्यभार संभल चुके होते हैं. पौराणिक काल में यह दिन देवी एकादशी की उत्पत्ति से जुड़ा हुआ है. भगवान कृष्ण के परम मित्र सुदामाजी ने उत्पन्ना एकादशी का व्रत किया था. इस व्रत के प्रताप से उन्हें अपने राजपाट के साथ पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी.

इस व्रत का महत्व सभी प्रमुख एकादशियों में शामिल है. उत्पन्ना एकादशी व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्रों को धारण करें. विष्णुजी का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें. इसके बाद पूरे दिन उपवास करें. इस दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ क​रें. अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मणों को भोजन कराकर व्रत पूर्ण करें.

कब है उत्पन्ना एकादशी

उत्पन्ना एकादशी मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि होती है. इस बार यह तिथि 25 नवंबर को मध्य रात्रि 1 बजकर 1 मिनट से आरंभ होगी. यानी कि तब तक 26 नवंबर की तिथि लग चुकी होगी. इसका समापन 27 नवंबर की सुबह 3.47 बजे होगा. यानी कि उदया तिथि के अनुसार उत्पन्ना एकादशी का व्रत 26 नवंबर को रखा जाएगा.

Utpanna Ekadashi का महत्व

उत्पन्ना एकादशी का महत्व पुराणों में बहुत ही खास माना गया है. मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु के अंश से देवी एकादशी की उत्पत्ति हुई थीं. कथाओं में बताया गया है कि ए‍क बार भगवान विष्णु योग निंद्रा में सो रहे थे. तभी मुर नामक एक दैत्य उन पर आक्रमण करने ही वाला था कि भगवान विष्णु के शरीर से एक दिव्य स्वरूप देवी की उत्पत्ति हुई. उन्होंने युद्ध में मुर नामक दैत्य का वध कर दिया. इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने देवी को एकादशी नाम दिया और वरदान भी दिया कि देवी एकादशी की पूजा करने वाले और उनका व्रत करने वालों को सुख और सौभाग्‍य की प्राप्ति हाेगी. तभी से एकादशी का व्रत रखा जाता है और मां एकादशी की पूजा की जाती है.